इमरजेंसी ड्यूटी लगाने को लेकर जिला अस्पताल के डॉक्टर्स में विवाद
इमरजेंसी ड्यूटी लगाने को लेकर जिला अस्पताल के डॉक्टर्स में विवाद

इमरजेंसी ड्यूटी लगाने को लेकर जिला अस्पताल के डॉक्टर्स में विवाद

इमरजेंसी ड्यूटी लगाने को लेकर जिला अस्पताल के डॉक्टर्स में विवाद गुना 20 सितंबर (हि.स.)। जिला अस्पताल प्रबंधन इस समय कोरोना के बढ़ते मरीजों की संख्या से जूझ रहा है। ऐसे समय में अस्पताल के कुछ डॉक्टर्स के बीच इमरजेंसी ड्यूटी को लेकर उपजे विवाद ने प्रबंधन की परेशानी को और अधिक बढ़ा दिया है। खास बात यह है कि इस विवाद की जड़ में प्रबंधन द्वारा डॉक्टर्स की लगाई गई ड्यूटी में भेदभाव सामने आया है। कई डॉक्टर्स ऐसे हैं जिन्हें जूनियर होने के बाद भी इमरजेंसी ड्यूटी से दूर रखा गया है। जबकि कुछ डॉक्टर्स कई प्रोग्राम के प्रभारी होने के साथ-साथ अन्य डॉक्टर्स से काफी ज्यादा सीनियर हैं, फिर भी उनकी ड्यूटी इमरजेंसी में लगाई जा रही है। कुल मिलाकर नियम को अनदेखा कर लगाई जा रही ड्यूटी की वजह से अन्य डॉक्टर्स में असंतोष पनप रहा है। जिसका प्रभाव अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं व व्यवस्थाओं पर पड़ रहा है। जानकारी के मुताबिक जिला अस्पताल में इस समय कुल 37 डॉक्टर पदस्थ हैं। हाल ही में डॉ एसके श्रीवास्तव के सिविल सर्जन पद से रिटायर होने के बाद एक डॉक्टर की कमी हो गई। डॉ श्रीवास्तव आंखों के सर्जन थे। उनके बाद अब अस्पताल में कोई सीनियर सर्जन नहीं है। नेत्र रोग चिकित्सक के रूप में एक मात्र डॉ आंकाक्षा पांडे हैं। जो इस समय ओपीडी में ड्यूटी देती हैं। अस्पताल में डॉक्टर्स की ड्यूटी को लेकर विवाद तो काफी समय से चल आ रहा है। यह विवाद मेटरनिटी विंग के अलावा अस्पताल की मुख्य जनरल ओपीडी व इमरजेंसी ड्यूटी को लेकर भी है। हाल ही में यह विवाद तब बढ़ा जब अस्पताल के 8 डॉक्टर्स कोरोना संक्रमण की वजह से क्वॉरंटीन हो गए। ऐसे में मेटरनिटी विभाग की ओटी को बंद करना पड़ा है। वहीं अन्य डॉक्टर्स पर काम का दबाव अतिरिक्त बढ़ गया है। इसी बीच आरएमओ पद की जिम्मेदारी एक जूनियर डॉक्टर को देने से अन्य डॉक्टर्स में असंतोष पनप गया। क्योंकि उक्त जूनियर डॉक्टर को ऐसे में इमरजेंसी ड्यूटी नहीं करनी पड़ेगी। यही नहीं कुछ जूनियर डॉक्टर भी अन्य वार्डों की जिम्मेदारी लेकर इमरजेंसी ड्यूटी से पहले से ही बचे हुए थे। यह सब उन डॉक्टर्स को रास नहीं आया जो उम्र के साथ-साथ अनुभव के मामले में भी दूसरों से बहुत ज्यादा सीनियर थे। यही वजह है कि अतिरिक्त काम के बोझ तले दबे डॉक्टर्स ने इस्तीफा देकर अपने मन की पीड़ा जाहिर कर दी। नतीजतन सिविल सर्जन को उक्त जूनियर डॉक्टर को आरएमओ पद से हटाना पड़ा। लेकिन इसके बाद भी असंतोष की आग नहीं थमी है। क्योंकि इसके बाद भी निष्पक्ष रूप से जूनियर व सीनियर को देखते हुए डॉक्टर्स की ड्यूटी इमरजेंसी में नहीं लगाई गई है। - नियम सबके के लिए एक नहीं जिला अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक डॉ एसके श्रीवास्तव सिविल सर्जन सह अस्पताल अधीक्षक जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने के बाद भी अपने कक्ष में नियमित रूप से आंखों के मरीजों देखते थे। यही नहीं सप्ताह में दिन निश्चित कर मरीजों का ऑपरेशन करते थे। इसके उलट तत्कालीन आरएमओ डॉ पीएन धाकड़ इस पद पर रहते हुए ओपीडी में मरीजों को बहुत कम देखते थे। जैसे ही कोरोना आया तो डॉ धाकड़ को कोविड वार्ड का प्रभारी बना दिया गया। वहीं आरएमओ पद पर बेहद जूनियर डॉक्टर दंत रोग विशेषज्ञ डॉ एपीएस धाकड़ को बिठा दिया गया। जिसके बाद ओपीडी में दंत का कोई चिकित्सक नहीं बचा। नतीजतन दंत के रोगियों को बिना इलाज के ही लौटना पड़ा। इसी बीच अस्पताल की चौखट पर एक मरीज के इलाज के अभाव में मौत हो गर्ई। इस मामले के बाद डॉ धाकड़ को हटाकर डॉ राहुल श्रीवास्तव को बना दिया गया। जो इससे पहले ओपीडी में मरीजों को देखते थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने ओपीडी छोड़ दी तथा इमरजेंसी ड्यूटी से भी बच गए। यह स्थिति सीनियर डॉक्टर्स को नगवार गुजरी और उन्होंने अपना गुस्सा इस्तीफा देकर प्रकट किया। इसके बाद डॉ सुधीर राठौर को आरएमओ पद की जिम्मेदारी दे दी गई। डॉ राठौर अस्थि रोग विशेषज्ञ हैं। इन्होंने दो साल के दौरान कभी भी इमरजेंसी ड्यूटी नहीं की है। जबकि इनसे बहुत ज्यादा सीनियर डॉ वीरेेंद्र रघुवंशी नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ हैं। साथ ही कैंसर यूनिट के दो साल से प्रभारी हैं। इनकी उम्र 57 साल से अधिक है। इसके बावजूद इनसे लगातार नियमित ड्यूटी के अलावा इमरजेंसी में सेवाएं ली जा रही हैं। वहीं एडमिनिस्ट्रेटर पद पर नियुक्त डॉ शिल्पा टाटिया ओपीडी के कार्य से पूरी तरह से मुक्त हैं। जबकि कोरोना काल में मेटरनिटी विंग की ओपीडी डॉक्टर्स की कमी के कारण बंद पड़ी है। मेटरनिटी विंग में भी सीनियर और जूनियर डॉक्टर्स के बीच इमरजेंसी ड्यूटी को लेकर विवाद चल रहा है। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक-hindusthansamachar.in

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