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परिवार की आजीविका चलाने में महिलाएं भी नहीं हैं किसी से पीछे

महिला दिवस विशेष: जिले में 6937 महिला स्वसहायता समूहों ने लिखा आत्मनिर्भरता का नया इतिहास अनुपपुर, 07 मार्च (हि.स.)। परिवार की आजीविका चलाने के लिए महिलाएं भी पुरुषों का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही हैं। सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े हुए परिवारों के सामाजिक एवं आर्थिक सषक्तिकरण के लिए जिले में कार्यरत महिला स्वसहायता समूह महिला आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रहे हैं। जिले में 78021 ग्रामीण परिवार 6937 महिला स्वसहायता समूहों से जुड़ चुके हैं। इसी तरह 553 ग्राम संगठनों एवं 14 संकुल स्तरीय संगठनों के अंतर्गत जिले की महिला शक्ति अपनी एक नई पहचान बनाने की ओर कदम बढ़ा चुकी है। ये स्वसहायता समूह गरीब एवं पिछड़े हुए तबके में हो रहे सकारात्मक बदलावों का प्रतीक बन चुके हैं। लगन, अनुशासन और कठिन मेहनत व स्व की अनुभूति का प्रतीक है स्व सहायता समूह। घर की चार दीवारी के बाहर निकलकर अपने और अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करने, महिलाओं के आत्म सम्मान, स्वभिमान और आत्म विश्वास का नाम है स्व सहायता समूह। दरअसल, मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अनूपपुर अंतर्गत स्व सहायता समूहों के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं में न सिर्फ नेतृत्व एवं निर्णय क्षमता का विकास हुआ है, बल्कि सालों साल से स्थापित सामाजिक कुप्रथाओं, मिथकों को दूर कर एक नए समाज के निर्माण में अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर रही है समूह की ये दीदियां। आत्मनिर्भरता का दूसरा नाम है महिला स्व सहायता समूह। आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की दिशा में स्व सहायता समूह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का भी निर्वहन कर रहे हैं। कुछ सालों पहले अपनी हर एक जरूरतों के लिए परिवार के पुरुष सदस्यों के ऊपर निर्भर रहने वाली महिलाएं अब स्वयं आत्मनिर्भर होकर अपने पति और परिवार के आर्थिक सहयोग हेतु आगे आकर मिसाल कायम कर रही हैं। जिले के पुष्पराजगढ़ विकासखंड की सरस्वती की आजीविका एक्सप्रेस हो या बरबसपुर की सीमा की आजीविका कैंटीन, लीलाटोला की पद्मावती की किराना दुकान हो या बैंक सखी के रूप में अपने दायित्यों का निर्वहन करती रेखा द्विवेदी, आत्मनिर्भर शमा खान हों या अपने समूह से ऋण लेकर पति के ऑटो की किश्त चुकाने वाली राधा मिश्रा, मुख्यमंत्री जी के साथ आत्मविश्वास के साथ संवाद करने वाली ग्राम सिवनी की उषा राठौर हों या कनईटोला की हेमलता, कृषि सखी के रूप में प्रदेश के बाहर जैविक कृषि के गुर सिखाने वाली चंपा सिंह हों या रानी केवट, सीतापुर की सुनीता राठोर हों या केल्हौरी की सीमा पटेल , आजीविका गतिविधियों से अपनी आजीविका सुदृढ करने वाली नीतू रजक हो या द्रोपदी साहू, कोरोना काल में अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा कर मास्क बनाकर आम आदमी तक पहुंचाने वाली अंजनी जयसवाल हों या सविता नापित, समूहों के दस्तावेजीकरण हेतु अपना योगदान दे रही विमला मानिकपुरी हों या भानमती या सुहागवती, विभिन्न उद्यमों को अपनाकर आत्मनिर्भर कृष्णा बाई हों या शोभा साहू, ऐसे न जाने कितने नाम हैं, जो अब दूसरों के लिए एक उदाहरण बन चुके हैं। समूह की इन महिलाओं ने अपनी लगन व मेहनत से न सिर्फ अपना नाम रोशन किया है, बल्कि आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम कर ये दूसरों के लिए आदर्श बन चुकी हैं। नि:संदेह यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि महिला स्व सहायता समूहों ने एक आंदोलन के रूप में समाज के पिछड़े व वंचित वर्ग को समाज में न सिर्फ सम्मानजनक स्थान दिलाया है, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता व स्वाभिमान के साथ जीने की एक नई राह भी दिखायी है। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश

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