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रतलाम में तालेबंदी का व्यापक असर, सड़कों पर पसरा सन्नाटा

रतलाम, 28 मार्च (हि.स.)। कोरोना संक्रमण मरीजों की संख्या निरंतर बढऩे के कारण प्रदेश के कई जिलों सहित रतलाम जिले में भी रविवार को तालेबंदी की गई, जिसके कारण दवा और दारू की दुकानें छोड़कर सारी दुकानें बंद रही। सोशल मीडिया पर इस बात की चर्चा अधिक रही कि दूध की दुकानें, डेरी बंद रही और शराब दुकानों को खुला रखा गया, हालांकि जिला प्रशासन ने एक दिन पूर्व ही दूध व सब्जी की दुकानों को बंद रखने के निर्देश दिए गए थे, इस कारण लोगों ने पहले ही सारी व्यवस्था कर ली थी, लेकिन जिन लोगों को खबर बाद में मिली वो दूध के लिए परेशान नजर आए। गत दो-तीन दिनों से जिले की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सोशल मीडिया पर काफी टिप्पणी शासन-प्रशासन के खिलाफ देखी जा रही है। वहीं मीडिया में भी इस बात की काफी चर्चा है कि जिस प्रकार से राज्य सरकार दावा कर रही है कोरोना संक्रमण के मरीजों के उपचार में कही कमी नहीं रखी जाएगी, लेकिन उसके बाद भी उपचार की व्यवस्था सही तरीके से नहीं होने पर लोगों में नाराजगी देखी जा रही है। कोरोना संक्रमण से भयभीत भी, लेकिन गाईड लाईन का पालन नहीं। जिले में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। शनिवार की रात आई रिपोर्ट में भी 84 व्यक्ति पाजिटिव आए, इससेे लोगों में भय का माहौल उत्पन्न हो गया। प्रशासन लगातार दबाव बना रहा है कि लोग सामाजिक दूरी का पालन करें और मास्क अनिवार्य रुप से लगाए। जिला प्रशासन का अमला फिर सड़कों पर उतरकर लोगों को समझाईश देेता रहा, उसके बावजूद भी कई इलाकों में तो लोग मास्क को अपने जीवन का अंग बनाना ही नहीं चाहते। शराब की दुकानें खुली, दूध की दुकानें बंद रही आज इस बात की चर्चा चारों तरफ रही कि प्रशासन का ऐसा केसा निर्णय कि शराब की दुकानें खुली रही और दूध की दुकानों पर ताला लगा रहा। यहां तक की बंदी से दूध देने वाले भी शहर में प्रवेश नहीं कर पाए। डर केे मारे वे भी अपने ग्राहकों को दूध नहीं दे पाए की कही पुलिस का डंडा उन पर नहीं चल जाए। सांची के पार्लर भी बंद रहे और दूग्ध की डेरियों और दुकानों पर भी ताले नजर आए। लोगों को दूध नहीं मिला, लोग शासन-प्रशासन को कोसते रहे और जनप्रतिनिधियों को भी कि यह कैसा निर्णय है कि शराब की दुकानें खुली और दूध लोगों को नसीब नहीं। बताते है कि जिले में शराब की 99 दुकानें है और रतलाम शहर में लगभग 16 है। दुकानें सभी खुली रही लैकिन दुकानों पर भीड़ नजर नहीं आई। साल में चार बार प्रशासन को दुकानें बंद करने के अधिकार है। शायद ठेकेदार भी चाहता होगा कि जब ग्राहक ही दुकान पर नहीं है तो दुकानें चालू रखने से क्या फायदा? जनहित में हर व्यक्ति चाहे वह कोई भी दुकानदार हो जनता के पक्ष में ही निर्मय करता है और सोचता है, लेकिन शासन इस बारे में क्यों नहीं सोचता यह गंभीर प्रश्न है। स्टेशन पर भी सन्नाटा रहा तालेबंदी के कारण सारे शहर में सन्नाटा रहा, इक्का-दूक्का वाहन ही सड़कों पर नजर आए। ट्रेनें समय पर आई और समय पर गई। कई यात्री आए और गए भी, लेकिन उन्हें अपने निजी साधनों से ही स्टेशन पहुंचना पड़ा और अपने घर तक पैदल ही आना पड़ा, क्योंकि डर के मारे कोई भी अपने परिजनों को लेने स्टेशन नहीं गया और ना ही डर के मारे रिक्शा व मैजिक चले। साल का यह पहली तालेबंदी थी। यही हाल रहेे तो लोगों को गत वर्ष के अनुभव ताजे हो जाएंगे और तालेबंदी की व्यवस्था सेे अपने को अभ्यस्त बनाना पड़ेगा। फिलहाल तो आगामी आदेश तक हर रविवार को तालेबंदी केे निर्देश है और हालात बने रहे तो यह बीच में भी तालाबंदी का निर्णय सरकार ले सकती है। इसलिए जरूरी है कि नागरिक कोरोना गाईड का पालन कर कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के आदेशों का पालन करें। हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी

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