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दुकानदार ने अंगूठा लगवाकर खाते में चढ़ा दी 6 बोरी यूरिया और 5 बोरी सुपर फॉस्फेट

गुना, 4 जून (हि.स.) । जिले के धरनावदा गांव में किसान से खाद खरीदी के नाम पर फर्जीबाड़ा सामने आया है। यहां एक किसान ने जितनी बोरी यूरिया खरीदा उससे ज्यादा यूरिया और अन्य खाद भी उसके खाते में चढ़ाा दिया गया। जब उसके मोबाइल पर मैसेज आया, तो वह चौंक गया। उसने तो सिर्फ दो बोरी यूरिया खरीदा था, जबकि मैसेज में 6 बोरी यूरिया और 5 बोरी सुपर फॉस्फेट खरीदने का मिला। बताया जाता है कि इसी तरह जमाखोरी की जाती है। ताजा मामला धरनावदा गांव का है। 2 जून को किसान माखन सिंह ने जैन कृषि सेवा केंद्र से दो बोरी यूरिया खरीदा। दुकानदार ने उसे 700 रुपए में दो कट्टे देकर अंगूठा लगवा लिया। जब वह घर पहुंचा, तो उसके मोबाइल पर खाद खरीदी का मैसेज आया। जैसे ही उसने यह मैसेज देखा तो होश उड़ गए। खाते पर 6 बोरी नीम कोटेड यूरिया और 5 बोरी एसएसपी के चढ़े थे। जिला विपणन अधिकारी उपेंद्र गुप्ता का कहना था कि कई बार दुकान पर भीड़ होने के कारण जल्दी में किसान की एंट्री पीओएस मशीन पर नहीं हो पाती। इसलिए दूसरे किसी किसान के खाते में ज्यादा बोरी चढ़ाकर वह एंट्री कर ली जाती है, ताकि ऑनलाइन दिख रहे स्टॉक और दुकान पर मौजूद स्टॉक में मेल रहे। अंतर होने पर दुकानदार को नुकसान हो सकता है। यहीं से जमाखोरी का खेल शुरू होता है। दरअसल, दुकानदार अपने परिचित या खुद अपने पास ही माल रख लेता है। कोई छोटा किसान जब उससे खाद लेने आता है, तो ये बोरी उस किसान के खाते में चढ़ा दी जाती है। खाद की बिक्री पीओएस मशीन पर किसान का अंगूठा लगवाने के बाद ही दिया जाता है। उस किसान के खाते में खाद मिलना दिखने लगता है। दुकानदार द्वारा यही चालाकी करके जमाखोरी की जाती है। जरुरत के समय उसे ब्लैक में बेचा जाता है। इससे उस छोटे किसान को उस समय समस्या का सामना करना पड़ता है। जब उसे ज्यादा खाद की जरुरत होती है। अमूमन अक्टूबर -नवंबर में सबसे ज्यादा खाद और यूरिया की जरुरत पड़ती है। उस समय जब यह किसान खाद लेने पहुंचता है, तो उसे यह कहकर खाद देने से मना कर दिया जाता है कि उसके खाते के अनुसार खाद दिया जा चुका है। फिर उस किसान को ब्लैक में ज्यादा दाम देकर खाद खरीदना पड़ता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जून-जुलाई में सोयाबीन, मक्का की बोनी के दौरान किसान को यूरिया और एसएसपी की जरुरत होती है। वहीं, डीएपी और यूरिया की सबसे ज्यादा जरुरत अक्टूबर - नवंबर में गेहूं, चने की बोनी के दौरान पड़ती है। पैदावार बढ़ाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। अमूमन एक से दो बीघा में एक बोरी खाद की डाली जाती है। किसान को जमीन के रकबे के अनुसार ही खाद देने का प्रावधान शासन द्वारा किया गया है। तय रकबे से ज्यादा खाद उसे प्रदान नहीं किया जाता। कृषि विभाग द्वारा जिले में बोहनी के रकबे के अनुसार ही डिमांड भेजी जाती है।जरुरत के समय विक्रय केंद्रों और सोसायटियों पर किसानों की कतार लगती हैं। बमुश्किल उन्हें खाद मिल पता है। ऐसे में उस भीड़ का फायदा निजी दुकानदार उठाते हैं। ये साल भर किसानों के नाम पर ज्यादा खाद चढ़ाकर खाद की जमाखोरी करते हैं। फिर जब इसकी सबसे ज्यादा जरुरत होती है, तब ब्लैक में इसको ज्यादा दामों पर बेचते हैं। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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