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मातृभाषा से ही खुलते हैं उन्नति के रास्ते : कैलाश सत्यार्थी

भोपाल, 16 मार्च (हि.स.)। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और शिक्षा में भारतीयता के समावेश के उद्देश्य आयोजित तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस एवं नेशनल एक्सपो ‘सार्थक एजुविज़न-2021’ में मंगलवार को ‘शिक्षा और सुरक्षित बचपन’ विषय पर ऑनलाइन उद्बोधन में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि भारतीयता मां के दूध के समान है, जो अमूल्य और अद्वितीय है। उसमें सार्वभौमिकता, समग्रता, गतिशीलता, समानता और स्वीकार्यता जैसे पांच गुणों का समावेश है, जो अन्य सभ्यताओं में दिखाई नहीं देते हैं। श्री सत्यार्थी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए हो रहे मंथन में कहा कि मातृभाषा से ही उन्नति के रास्ते खुलते हैं क्योंकि सृजन मातृभाषा से ही संभव होता है। हम धन संपत्ति से नहीं बल्कि ज्ञान-विज्ञान से ही विश्वगुरु बन सकते हैं। श्री सत्यार्थी ने कहा कि हम सबकी जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को शिक्षा और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित कराएँ। इस सत्र का संचालन भारतीय शिक्षण मंडल के अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी कर रहे थे। तीसरे सत्र में केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने आत्मनिर्भर भारत में महिलाओं की भूमिका विषय पर अपने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि आत्मनिर्भरता की नींव शिक्षा से ही बनती है। आज के भारत में भले ही आपको लैंगिक भेदभाव दिखता हो लेकिन परंपरागत भारत में स्त्री पुरुष के बीच कोई भेदभाव नहीं था। भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री मुकुल कानिटकर के साथ ऑनलाइन संवाद में स्मृति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर कहा कि यह निश्चित रूप से हमारी समस्याओं का समाधान करेगी। आज साबुन बनाने वाली कंपनी भी कस्टमर से राय लेती है, लेकिन अभी तक की शिक्षा व्यवस्था बिना अभिभावकों के राय के थोपी जा रही थी। महिलाओं की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए हमें उन क्षेत्रों में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक शोध करने की आवश्यकता है, जहां शोध नहीं हुआ है। समिधा नाम से आयोजित सत्र में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति जे. भानुमूर्ति ने शिक्षाविदों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन और चिंतन का अनुसरण किए बिना विश्व विकास और शांति को प्राप्त नहीं कर सकता है। साँची विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा गुप्ता ने कहा कि आज की शिक्षा केवल पांच उद्देश्यों के लिए सीमित रह गई है- एक जॉब, दो बच्चे, तीन कमरों का मकान, चार पहिया वाहन और पांच अंकों में वेतन। इसमें जीवन, विश्वास, समाज, राष्ट्र और शांति के लिये जगह नहीं है। हम आज भी वही शिक्षा व्यवस्था ढो रहे हैं जो अंग्रेजों ने हमारी प्रकृति के खिलाफ ही बनाई थी। उन्होंने कहा कि 1857 में भारत में 3 प्रेसीडेंसी कॉलेज की स्थापना हुई थी और उसके बाद आज सैकड़ों हजारों कॉलेज उसी मॉडल पर हमारे देश में हैं। लेकिन हमें याद करना चाहिए कि जिस लंदन यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रेसीडेंसी कॉलेज स्थापित किए गए थे, उसी लंदन यूनिवर्सिटी को तब ब्रिटेन ने अव्यवहारिक मानते हुए तीन साल के लिए बंद कर दिया था। भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. विजय राघवन ने कहा कि आज रिसर्च की गुणवत्ता में सुधार किए जाने की आवश्यकता है। सरकार ने व्यवस्थागत कई सुधार किए हैं। आने वाले समय में रिसर्च को लेकर कई एजेंसीज फंड प्रदान करेंगी। उन्होंने कहा कि शोध अंग्रेजी और मातृभाषा दोनों में उपलब्ध होना चाहिए। तीन दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं एक्सपो का समापन बुधवार को दोपहर 2:30 बजे प्रशासन अकादमी के स्वर्ण जयंती सभागार में होगा। समापन सत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश की खेल एवं युवक कल्याण मंत्री डॉ. यशोधरा राजे सिंधिया, स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा उपस्थित रहेंगे। हिन्दुस्थान समाचार/राजू

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