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आयुर्वेद के लिए आवश्यक है संस्कृत, संस्कार एवं संस्कृति: कुलपति दुबे

चित्रकूट, 26 फरवरी (हि.स.)। नानाजी की पुण्यतिथि कार्यक्रम के उपलक्ष्य में एक दिन पहले शुक्रवार को लोहिया सभागार उद्यमिता विद्यापीठ, दीनदयाल परिसर चित्रकूट में "आयुर्वेदिक औषधियों के मानकीकरण, गुणवत्ता परीक्षण एवं नई औषधियों की खोज में चुनौतियां तथा नवीन अन्वेषण" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन सत्र मां सरस्वती एवं राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलन कर हुआ। इसमें दीनदयाल शोध संस्थान के कोषाध्यक्ष वसंत पंडित, ग्रामोदय विश्वविद्यालय के मैनेजिंग कमेटी मेंबर व मेघा दत्त यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विवेक, दिल्ली से समाजसेवी राजकुमार भारद्वाज, जगदगुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश चन्द्र दुबे व अन्य विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर एवं शोध छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। आयुर्वेद औषधियों पर आधारित इस कार्यशाला में वसंत पंडित ने कहा कि आयुर्वेदिक औषधि नहीं अपितु जीवन जीने की एक शैली है व हम इसे सदैव अपनी जीवन पद्धति का अंग बनाकर रखना चाहिए। हमें इसकी चुनौतियों को देखते हुए इसकी अपार संभावनाओं का लाभ लेना चाहिए। ग्रामोदय विश्वविद्यालय के मैनेजिंग कमेटी के मेंबर डॉ. विवेक ने बताया की आयुर्वेद संस्कार है, जीवन शैली है, यही संस्कार हमें वर्षों से स्टैंडर्डाइजेशन पर चलना सिखाते हैं। पाश्चात्य सभ्यता ज्यादा प्रचलित है क्योंकि हमने अपनी भारतीय आयुर्वेद को ज्यादा महत्व नहीं दिया। उन्होंने भारतीय आयुर्वेद को ही अपना नाम देकर अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। आज गो विज्ञान केंद्र की जरूरत पड़ी, क्योंकि हमने देसी नस्ल की गाय गवा दी हैं अब हमें इसके पुनः अवलोकन की जरूरत है। जगदगुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश चन्द्र दुबे ने बताया कि मानकीकरण में नए शोध कैसे हो और कैसे हम अपने मूल्य पुनः स्थापित कर सकते है। उन्होंने बताया कि हम शहरीकरण में सब पीछे छोड़ आए हैं। उसमें आयुर्वेद भी कहीं रह गया है। हमने पाश्चात्य संस्कृति को इतना अपना लिया है कि स्वयं की जीवन शैली से भारतीय मूल्य ही हटा दी है। हमें भारतीयता अपनाने की पुनः जरूरत है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद के लिए आवश्यक है संस्कृत, संस्कार एवं संस्कृति। इसके बिना मानकीकरण हो ही नहीं सकता। उन्होंने भारत रत्न नानाजी की परिकल्पना की भी बात की, कैसे उनकी परिकल्पना आज साकार हो रही है। उन्होंने नई शिक्षा नीति का उदाहरण देते हुए बताया कि यह ऐसा लगता है जैसे नानाजी का ही कोई वक्तव्य हो। हिन्दुस्थान समाचार/राजू

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