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नर्मदा तट के पर सैकड़ों वर्ष पुराने हैं दुर्लभ कल्पवृक्ष, आंख व अस्थमा के लिए होता है फलों का उपयोग

अनूपपुर, 21 जनवरी (हि.स.)। पुष्पराजगढ़ जनपद अंतर्गत ग्राम सिवनी संगम डिंडोरी जिले की सीमा से लग हुए क्षेत्र में कल्पवृक्ष स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं के द्वारा किए गए समुद्र मंथन के बाद 14 रत्न प्राप्त हुए थे। जिनमें से एक कल्पवृक्ष भी था। जिस वजह से स्थानीय श्रद्धालुओं की इस पर श्रद्धा है तथा ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे जो भी इच्छा मांगी जाती है वह पूरी होती है। इसे देखने तथा मनोकामना पूर्ति के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। यह वृक्ष सैकड़ों बरसों से यहां स्थित है। धार्मिक ग्रंथों में कल्पवृक्ष का उल्लेख है। जिसे मनोकामना पूर्ति का प्रमुख माध्यम माना गया है तथा इस वृक्ष के नीचे जो कल्पना की जाती है वह पूरी होती है। इसीलिए इसका नाम कल्पवृक्ष पड़ा है। यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए पहुंचते हैं। बिना पूजा पूर्ण नहीं होती नर्मदा परिक्रमा नर्मदा तट पर स्थित यह कल्पवृक्ष जिसका पूजन किए बिना नर्मदा परिक्रमा पूर्ण नहीं होती है। इस वजह से प्रतिदिन 10 से 15 परिक्रमा वासी यहां पहुंचते हैं। इसके साथ ही मकर संक्रांति तथा महाशिवरात्रि के दिन यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। बीमारी दूर करने में भी सहायक यह वृक्ष जिसकी आयु (मान्यताओं के अनुसार)हजारों वर्ष से भी अधिक बतलाई गई है, जो बीमारियों को दूर करने में भी सहायक होता है। कल्पवृक्ष के फल में प्रचुर मात्रा में विटामिन बी और सी होता है तथा स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा इसका उपयोग अस्थमा तथा आंख से संबंधित रोगों को दूर करने में उपयोग किया जाता है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित होने की वजह से हाल के दिनों में मिट्टी के कटाव के कारण यह वृक्ष धराशायी होने की कगार पर पहुंच गया था। जिसमें जिला प्रशासन द्वारा यहां वृक्ष को पानी के कटाव से बचाने के लिए रिटेनिंग वॉल का निर्माण कराया गया है। हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला-hindusthansamachar.in

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