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मुस्तैद रही पुलिस, चाक-चौबंद व्यवस्थाएं, करीला में पहुंच सके पैदल श्रद्धालु

गुना, 02 अप्रैल (हि.स.)। रंगपंचमी के अवसर पर लगने वाला करीला मेला इस बार निरस्त कर दिया गया था, वजह कोरोना के बढ़ते मामले थे। शासन-प्रशासन की मंशा थी कि करीला में अधिक श्रद्धालु न पहुंचे अन्यथा लाखों श्रद्धालुओं के पहुंचने के कारण कोरोना विस्फोट हो सकता है, साथ ही कोरोना प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। मेला निरस्त करने एवं श्रद्धालुओं को ढोने वाले वाहनों पर सख्ती से रोक के चलते रंगपंचमी के अवसर पर करीला में कुछेक हजार श्रद्धालु ही दर्शन कर सके। इस दौरान मेला परिसर में न तो राई होते दिखी और न ही मेला वाले रंग-ढंग दिखाई दिए। हालांकि प्रशासनिक अधिकारी-कर्मचारी जरूर पूरी मुस्तैदी से सुरक्षा एवं अन्य इंतजामों में जुटे रहे। मेला में आए श्रद्धालु माता जानकी के दर्शनों को लेकर काफी उत्साहित नजर आए एवं सुबह से देर शाम तक मंदिर के अंदर से जानकी मैया के जयकारे गूंजते रहे। हालांकि श्रद्धालु राईनृत्य न होने को लेकर निराश नजर आए। अधिकांश श्रद्धालुओं का कहना था कि मेला निरस्त करने का निर्णय सही है। अन्यथा कोरोना के मामले बढ़ सकते थे जो सभी के लिए बुरा होता। मेला निरस्त होने की सूचना के लिए करीब एक सप्ताह पहले से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। सोशल मीडिया व मीडिया के अन्य माध्यमों के साथ प्रशासन द्वारा प्रमुख स्थानों पर बैनर-पोस्टर भी लगवाए गए थे। फिर भी मंदिर खुला रहने और मेला निरस्त होने के कारण लोग असमंजस की स्थिति में थे, ऐसे में बीना, सागर, ललितपुर, छतरपुर, टीकमगढ़, झांसी, विदिशा सहित अन्य इलाकों से जीप, लोडिंग व दोपहिया वाहनों से श्रद्धालु सुबह से ही पहुंचने लगे थे। सबसे अधिक श्रद्धालु बंगला चौराहा से बामौरीशाला होकर करीला पहुंचने वाले मार्ग पर दिखाई दिए। इस मार्ग पर पुलिस द्वारा चार दिन पहले से ही नाका बनाया गया था। जहां पर सभी वाहनों को पूरी तरह से रंगपंचमी पर रोक दिया गया। ऐसे में जो श्रद्धालु दूर-दराज से आए थे, वह पैदल ही दस किलोमीटर दूर मैया के मंदिर के लिए निकल पड़े। वहीं स्थानीय श्रद्धालु जिन्हें करीला पहुंचने वाले सभी रास्तों की जानकारी थी, वह भी पुलिस से छिपते-छुपाते हुए पैदल या दोपहिया वाहनों से करीला पहुंच गए। श्रद्धालु दिखे कम, पुलिस-प्रशासन ज्यादा: मंदिर परिसर में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि रैलिंग भरकर चली हो। मुख्य मंदिर के सामने पांच रैलिंग लगी हुई हैं। जिनमें से पहली वाली रैलिंग में ही श्रद्धालु दिखाई दिए। भीड़भाड़ कम होने से आराम से दर्शन हुए। इस बार मंदिर प्रबंधन द्वारा ऑनलाईन दर्षनों की व्यवस्था भी की गई थी। लेकिन तमाम प्रतिबंधों पर आखिरकार श्रद्धालुओं की आस्था भारी पड़ी और वाहनों को रोके जाने के बाद हजारों की संख्या में श्रद्धालु पैदल ही मंदिर पहुंच गए। इस दौरान प्रसाद व अन्य सामग्री की दुकानें न होने के कारण मैया के दर्षन लाभ श्रद्धालुओं ने लिए और मन्नत मांगी। हर बार पहुंचते थे लाखों श्रद्धालु: हर वर्ष तीन दिवसीय मेले के पहले दिन से लेकर रंगपंचमी पर देर बीस लाख से अधिक श्रद्धालु माता के दरबार में दर्शन कर चुके होते थे। मेला के दौरान सुबह से ही मैया के दरबार में दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। यहां प्रसिद्ध वाल्मीकि गुफा के साथ-साथ माता सीता और लव-कुष की प्रतिामाएं विराजमान हैं। रंग पंचमी पर लगने वाले इस वार्षिक मेले में मन्नत मांगने और पूरी होने पर बधाई के रूप में राई नृत्य कराने के लिए प्रदेश ही नहीं अपितु सीमवर्ती राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। करीला में आए श्रद्धालु माता जानकी के दर्षन के उपरांत बुंदेलखंड का प्रसिद्ध राई नृत्य का आनंद उठाते हैं। पहले एकदिवसीय रहे इस मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमडऩे के कारण अब इसका स्वरूप तीन दिवसीय कर दिया गया। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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