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अतीत और अनागत के झगड़े में बीत रहा हमारा जीवन : मुनिश्री

गुना, 21 फरवरी (हि.स.)। आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री अभय सागरजी, प्रभात सागरजी एवं निरीह सागरजी महाराज का ससंघ मंगल प्रवेश गुना में रविवार की प्रात: हुआ। इस मौके पर जैन समाजबंधुओं ने मुनिसंघ का पैदल विहार एबी रोड स्थित गौशाला से कराया। ओवरब्रिज के निकट बैंड-बाजे और दिव्यघोष के साथ मुनिसंघ की भव्य अगवानी हुई। यहां से मुनि संघ का एक भव्य जुलूस शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए नीचला बाजार स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर पहुंचा। इस अवसर पर आर्यिका मां पवित्रमति माताजी ने ससंघ सुगन चौराहे पर मुनिसंघ की अगवानी कर दर्शन किए। इस अवसर पर नीचला बाजार स्थित जैन मंदिर पर चल रहे 16 दिवसीय शांतिनाथ महामंडल विधान, कलशारोहण, ध्वजदंड स्थापना एवं विश्वशांति महायज्ञ कार्यक्रम में मुनिसंघ एवं आर्यिका संघ का सानिध्य प्राप्त हुआ। कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी मनोज लल्लन भैयाजी एवं धर्मेन्द्र बज ने किया। इस मौके पर कलशारोहण करने वाले श्रावकों श्रेष्ठियों आदि का चयन हुआ। कलशारोहण का यह सौभाग्य कमल विद्यादेवी बडज़ात्या परिवार ने और ध्वज दण्ड स्थापना का सौभाग्य सरल सौगानी अमित कुमार प्रियांश सौगानी परिवार ने प्राप्त किया। वहीं कार्यक्रम का शुभारंभ प्रथम जैन दमोह द्वारा मंगलाचरण कर किया गया। चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्ज्वलन बजरंगगढ़ समिति एवं गौशाला समिति के अध्यक्ष एवं मंत्री एसके जैन, प्रदीप जैन, अरविंद जैन ने किया। कार्यक्रम में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री निरीह सागरजी महाराज ने कहा कि हमें 21 वीं सदी में इक्किसा काम करना है। जो वर्तमान में पाठशालाएं बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण करना रही हैं। हमें इसमें सहभागी बनना है। मुनिश्री ने कहा कि इंसान को जितनी ज्यादा सुविधाएं मिली वह उतना ही क्षमताओं में विकलांग होता गया। इसलिए हम मशीन का कम प्राकृतिक चीजों का ज्यादा उपयोग करें। पहले के लोग सूर्य की धूप की स्थिति देखकर समय बता देते थे। इस अवसर पर प्रभात सागरजी महाराज ने कहा कि भगवान की भक्ति पाप कर्म को नष्ट करती है। एकाग्रता से बहुत से काम हो जाते हैं। एकाग्रता मोक्ष मार्ग में आवश्यक है। इसलिए हमें भगवान की पूजा अर्चना एकाग्रता से करना चाहिए। धर्मसभा को संबोधित करते हुए अभय सागरजी महाराज ने कहा कि ज्यों-ज्यों हम सांसारिक क्रिया करते हैं, हम सांसारिकता में फंसते ही जाते है। आज का व्यक्ति थोड़ा सा ज्ञान क्या पा लेता हैं उसका अहंकार बढ़ जाता है। इसलिए आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करें। मुनिश्री ने कहा कि अतीत और अनादर के झगड़े में हमारा जीवन बीत रहा है। इसलिऐ वर्तमान में संयम और समता पूर्वक जीवन जिये। वर्तमान में जीवन जीने से ही कल्याण संभव है। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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