तानसेन समारोह के चौथे दिन हिंदुस्तानी के साथ कर्नाटक शैली की जुगलबंदी से महका समां

On the fourth day of Tansen celebrations, Mahanta with Hindustani in a Karnataka-style jugalbandi
On the fourth day of Tansen celebrations, Mahanta with Hindustani in a Karnataka-style jugalbandi

भोपाल, 29 दिसम्बर (हि.स.)। तानसेन समारोह में चौथे दिन की मंगलवार प्रातःकालीन सभा में रसिकों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो धाराओं का भरपूर आनंद उठाया। इस सभा में जहां मधु भट्ट तैलंग जैसी ध्रुपद गायिका ने अपने गायन की अनूठी छाप छोड़ी तो वहीं ग्वालियर के युवा गायक यश देवले ने अपनी बेहतरीन गायकी से रसिकों को मुग्ध कर दिया। कर्नाटक शैली के गायक कावालम श्रीकुमार ने अपनी विशिष्ट गायकी से अलग ही आनंद का अहसास कराया। सभा का शुभारंभ साधना संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से हुआ। राग कोमल ऋषभ आसावरी के सुरों में पगी और चौताल में निबद्ध बंदिश-'रतन सिंघासन तापर आसन' को बड़े ही सहजता से गाया। अनंत महाजनी के संयोजन में सजी इस प्रस्तुति में पखावज पर अविनाश महाजनी और तबले पर बसंत हरमरकर ने संगत की। इसके बाद मंच संभाला जयपुर से आईं देश की जानी मानी ध्रुपद गायिका मधु भट्ट तैलंग ने। डागरवाणी में ध्रुपद गाने वाली मधुजी पहले भी तानसेन समारोह में आती रहीं हैं। उन्होंने राग कोमल ऋषभ आसावरी में अपना गायन शुरू किया।नोम तोम की आलापचारी से शुरू करके उन्होंने धमार में बंदिश पेश की जिसके बोल थे- 'लाजन भीज गई' इस बंदिश को उन्होंने ध्रुपद की बारीकियों के साथ गाया। शुद्ध धैवत के राग गुनकली से गायन को आगे बढ़ाते हुए आपने शूलताल में तानसेन रचित ध्रुपद-जय शारदे भवानी पेश किया। आपके साथ पखवाज पर अंकित पारिख व सारंगी पर आबिद हुसैन ने मीठी संगत का प्रदर्शन किया। अगली प्रस्तुति में ग्वालियर के युवा और संभावनाशील गायक यश देवले का ख़याल गायन हुआ। यश ने पंडित जितेंद्र अभिषेकी के शिष्य सुधाकर देवले से संगीत की तालीम ली है। उन्होंने ग्वालियर में पंडित महेश दत्त पांडेय से भी ग्वालियर की गायकी का मार्गदर्शन प्राप्त किया है। ग्वालियर के संगीत गुरु संजय देवले के सुपुत्र यश अपनी पीढ़ी के गायकों में अग्रणी हैं। उन्होंने राग शुद्ध सारंग में अपना गायन शुरू किया। सुंदर आलापचारी से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो बन्दिशें पेश की। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे -' ऐ बनाबन आयो री।' जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल थे। दोनों ही बंदिशों को यश ने जिस सहजता से गाया उससे उनकी तैयारी का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। सुर लगाने के ढंग से राग का स्वरूप निर्मित हो गया, और फिर सिलसिलेवार विस्तार में सुर खिलते चले गए। यश की आवाज में माधुर्य के साथ ओज भी है और वह तीनों सप्तकों में घूमती है। बहलाबों के बाद विविधतापूर्ण तानों की प्रस्तुति रसिकों के दिलों में हूक भरने वाली थी।गायन का समापन उन्होंने अभिषेकी जी द्वारा कंपोज राग सालग वराली के नाट्यगीत घेई छंद मकरंद से किया। उनके साथ हारमोनियम पर पंडित महेशदत्त पांडेय और तबले पर डॉ विनय विन्दे ने मणिकांचन संगत का प्रदर्शन किया। तानसेन समारोह के मंच पर पहली बार मेंडीलिन सभा के अगले कलाकार थे कोलकाता के सुगातो भादुड़ी। आप पाश्चात्य वाद्य मेंडोलिन बजाते हैं। तानसेन के मंच पर मेंडोलिन पहले कभी नहीं बजा। खैर मैहर घराने से ताल्लुक रखने वाले भादुड़ी ने राग अहीर विभास में वादन की प्रस्तुति दी। आमतौर पर मैंडोलिन लाइट म्यूजिक में इस्तेमाल होता है, शास्त्रीय संगीत में इसका इस्तेमाल बड़ी बात है।भादुडी जी ने इस राग में आलाप के बाद अद्धा तीनताल में सितारखानी गत बजाई और तीनताल में द्रुत गत बजाकर वादन का समापन किया।उनके साथ तबले पर अंशुल प्रताप सिंह ने ओजपूर्ण संगत की। सभा का समापन कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के जाने माने गायक कावालम श्रीकुमार के शास्त्रीय गायन से हुआ। श्रीकुमार की गिनती कर्नाटक संगीत के प्रतिष्ठित कलाकारों में होती है। आपने अपने गायन की शुरुआत राग रसिक प्रिया से की। कोटिश्वर अय्यर द्वारा रचित तमिल रचना गायन किया। इसके पश्चात उन्होंने गुरु बी शशिकुमार की रचना जो कि राग द्विजवंती में थी पेश की। आदिताल में निबद्ध इन रचनाओं को आपने खूब मनोयोग से प्रस्तुत किया। इनके साथ वायलिन पर आट्टूकाल बालसुब्रमण्यम एवं मृदंगम पर बोम्बई गणेश ने बेहतरीन संगत की। हिन्दुस्थान समाचार / उमेद-hindusthansamachar.in

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