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साल वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से नर्मदा के जलस्रोत में कमी, दम तोड़ रहीं सहायक नदियां

अनूपपुर, 23 फरवरी (हि.स.)। पवित्रनगरी अमरकंटक को नदियों का नगर कहा जाता है, माना जाता है कि पूर्व में यहां नर्मदा को छोडक़र 24 अन्य छोटी नदियां बहती थी, जो कहीं न कहीं नर्मदा में मिलती थी। इनमें 17 खुली जलस्त्रोत के रूप में बहती हुई और शेष गुप्त रूप में भूमि के नीचे से बहती मानी जाती है। लेकिन अमरकंटक में अब मुख्य रूप से नर्मदा, सोन, जोहिला जैसी मुख्य नदियों का उद्गम जल स्त्रोत नजर आता है। शेष नदियों में कुछ जलस्त्रोत के अभाव में विलुप्त हो गई तो कुछ गंदगी और संरक्षण के अभाव में अस्तित्व समाप्ति की बाट जोह रही है। नर्मदा मंदिर के मुख्य पुजारी नीलू महाराज के अनुसार इसका मुख्य कारण सतपुड़ा और मैकल पहाडिय़ों के बीच बसे अमरकंटक क्षेत्र में साल वृक्षों की सर्वाधिक कटाई और जलस्त्रोत वाली पौधों की जगह यूको लिप्टस जैसे पौधों की उपज माना गया है। इसके अलावा पुष्पराजगढ़ के दमगढ़ से लेकर मंडला जिले तक सैकड़ों स्थलों पर रेत के अवैध खनन से नर्मदा अपने उद्स्थल पर ही दयनीय बन गई है। टीक, साल, चाड़ व आम के पेड़ो से घिरे वनों से सदा हरी-भरी रहने वाली अमरकंटक की सतपुड़ा-मैकाल पहाडि?ों में अब वीरानापन आने लगा है। जिसके कारण खुद नर्मदा के लिए जलस्त्रोत का अभाव हो गया, वहीं वैतरणी, सोन, जोहिला जैसी नदियों की धार पतली हो गई। बताया जाता है कि सतपुड़ा और मैकल पहाडियों के बीच नर्मदा का कछार क्षेत्र साल वृक्षों की घनघोर वनीय क्षेत्र से भरे पड़े थे, जिससे पेड़ों की जड़ों से सालभर पानी का बहाव बना रहता था, इसमें नर्मदा की जलधारा विस्तारित रूप में बहती थी। यहीं नहीं नर्मदा के दोनों छोर पर लम्बी लम्बी उंचाई के जंगली घास उगा करते थे, इनमें बाघ, तेंदुआ सहित अन्य जानवरों का बसेरा भी बना हुआ था। साल के वृक्ष बारिश के मौसम में वर्षा के पानी को अवशोषित करते थे और यहीं अवशोषित जल बूंद-बूंद रूप में रिसते हुए नर्मदा में मिलते थे। लेकिन अब साल के वृक्षों की कटाई के कारण कछार क्षेत्र वीरान हो गया है और तटों पर पक्के निर्माण हो गए हैं। जिसके कारण अब नर्मदा सहित उनकी सहायक नदियों को जलस्त्रोत का अभाव हो गया है। अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही वैतरणी नर्मदा के सहयक नदियों में गायित्री, सावित्री, वैतरणी, कपिला आरंडी, बाराती सहित अन्य नदियां है। जिसमें गायित्री और सावित्री पर डैम बनाकर नर्मदा से जोड़ दिया गया है। जबकि वैतरणी नदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। वैतरणी नदी में नगर का दूषित पानी, कचरा और मलवा फेंका जा रहा है। जिसके कारण यह नदी अब मात्र नाम की रह गई है, जबकि जलधारा की जगह मलवा और दुर्गध शेष बच गया है। बारिश में भरती है उफान और गर्मी में हो जाती सकरी वनों के अभाव में अब नर्मदा सहित अन्य सहायक नदियों में पानी का अभाव हो गया है, जिसके कारण मानसून के दौरान पहाड़ों से उतरने वाली बारिश का पानी नदियों में उतरकर उफान भरने लगता है। लेकिन चंद दिनों के बाद पानी बहकर मात्र सकरी नालों के रूप में बहने लगती है। पक्के निर्माण पर भी दिया व सिया सहित एनजीटी ने भी निर्देशों का कभी पालन नहीं किया। कलेक्टर अनूपपुर चन्द्रमोहन ठाकुर ने बताया कि रामघाट, गायत्री एवं सावित्री सरोवर में सफाई कार्य शुरु करने के निर्देश पवित्र नगरी अमरकंटक में रामघाट, गायत्री सरोवर सहित अन्य नदियों की सफाई कार्य जल्द शुरु कराने के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला

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