भारत और रूस के बीच अटूट संबंधों का आधार प्रेम, सम्मान और दृढ़ विश्वासः इंगांराजविवि
भारत और रूस के बीच अटूट संबंधों का आधार प्रेम, सम्मान और दृढ़ विश्वासः इंगांराजविवि

भारत और रूस के बीच अटूट संबंधों का आधार प्रेम, सम्मान और दृढ़ विश्वासः इंगांराजविवि

अनूपपुर/अमरकटंक, 16 जुलाई (हि.स.) भारत और रूस के मध्य अटूट संबंधों का आधार प्रेम, सम्मान और दृढ़ विश्वास रहा है। रूस लम्बे समय से भारत का सहयोगी रहा है। दोनों देश के मध्य रणनीति, सैन्य, आर्थिक एवं कूटनीतिक रिश्तों का एक लम्बा इतिहास रहा है। रूस ने अपनी तकनीकी एवं ऊर्जा शक्ति से अंतरराष्ट्रीय जगत में ऊंची छलांग लगाई है। इस विषय में रूस की उपेक्षा और अवहेलना सम्भव नहीं है। तकनीकी क्षेत्र में बहुत प्रगति की है। सामरिक शक्ति में अमेरिका की बराबरी कर रहा है। परमाणु हथियारों के साथ बेलिस्टिक मिसाइल, कई लड़ाकू विमान और सबसे महत्वपूर्ण त्रिविम दृश्यन (3-डी) मिसाइल है। जहां की भूमि में प्राकृतिक संसाधनों का प्रचुर मात्रा में होना, उसकी ताकत को और अधिक बढ़ा देता है। भारत के शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के लक्ष्य को सराहा है। यह विचार गुरुवार को इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकण्टक के राजनीति विज्ञान एवं मानवाधिकार विभाग के द्वारा समकालीन वैश्विवक व्यवस्था में रूस का पुन: उदय विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार के दौरान कहीं। वेबिनार में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जवाहरलाल नेहरू विश्ववविद्यालय, नयी दिल्ली डॉ०राजन कुमार, राजनीति विज्ञान एवं अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन विभाग, स्टेट यूनिवॢसटी आफ न्यूयॉर्क डॉ० बप्पादित्या मुखर्जी, स्टेट यूनिवॢसटी ऑफ मॉस्को डॉ० लिडमिला खोखलोवा, राजनीति विज्ञान विभाग डॉ०बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर बिहार विवि मुज्जफरपुर बिहार प्रो० रोहिताश्व दुबे, प्रो० राकेश ङ्क्षसह अधिष्ठाता, सामाजिक विज्ञान संकाय, प्रो० अनुपम शर्मा विभागाध्यक्षा, राजनीति विज्ञान एवं मानवाधिकार विभाग, प्रो० नरोत्तम गान राजनीति विज्ञान एवं मानवाधिकार विभाग ने विषय का विश्लेषण करते हुए कई नये आयामों पर वेबिनार में रूस से सम्बन्धित कई आयामों जैसे द्वितीय विश्वयुद्घ पश्चात पूरे विश्व का दो ध्रुवों में बट जाना, सोवियत संघ का विघटन, रूस का पुन: उदय, रूस विदेश नीति, रूस-अमेरिका सम्बंध, रूस का सीरिया में हस्तक्षेप, रूस का अंतर्राष्ट्रीय जगत में स्थान, भारत-रूस सम्बंध, आदि कई मुद्दों पर गहन विश्लेषणत्मक चर्चा, विषय विषेशज्ञों द्वारा की गई। प्रो. राजन कुमार ने कहा कि 1991 में सोवियत संघ का विघटन होने के पश्चात पूरे विश्व में अमेरिका का वर्चस्व हो गया था। अमेरिका सुपर पॉवर से सुप्रीम पॉवर बन गया था। रूस की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई थी। लेकिन इन तमाम कठिनाईयो के बाद भी रूस का पुनॢनर्माण हुआ और एक शक्तिशाली देश के रूप में उभर कर अंतर्राष्ट्रीय जगत में सामने आया। डॉ. बप्पादित्या मुखर्जी ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत विभिन्न अंतराष्ट्रीय मंचों पर एक प्रभावी राष्ट्र के रूप में उभरा है। भारत के प्रति हर क्षेत्र में बहुत ही सहयोगी रही है। रूस ही एक ऐसा पहला देश था जिसने भारत से रूपये में व्यापार किया था। आर्थिक एवं तकनीकी के रूप में बहुत सहयोग किया है। प्रो० रोहिताश्व दुबे ने कहा कि वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की तुलना में रूस के साथ भारत के सम्बंध करीबी और बेहद मजबूत रहे है। भारत और रूस ऐतिहासिक रूप से रक्षा, व्यापार, ऊर्जा, अंतरिक्ष आदि क्षेत्रों में एक दूसरे से जुड़े रहे है।भारतीय नौसेना की शक्ति और तकनीकी क्षमता को ब$ढाने में रूस का महतवपूर्ण योगदान रहा है। प्रो.नरोत्तम गान ने कहा कि भारतीय रक्षा क्षेत्र में आवश्यकता को पूरा करने के लिए रूस का सहयोग बहुत ही महतवपूर्ण है। वेबिनार में भारत के विभिन्न प्रदेशों के विभिन्न विश्वविद्यालयों और शोध संस्थाओं से 80 से अधिक अध्यापक, शोद्यार्थी और विद्यार्थी गुगलमीट एप्लीकेशन के माध्यम से जुड़े तथा प्रमुख वक्ताओं के विचारों को सुने। हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in