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जीवन भर के वेतन से बंजर भूमि पर बनाया बगीचा

- 11 एकड़ खेत में 2500 पौधों के साथ खेती भी कालमुखी, 13 फरवरी (हि.स.)। भारत सरकार के उपक्रम भारत संचार विभाग में सेवाएं देते अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में इंदौर मुख्य डाकघर में अपर डिविजन क्लर्क के पद पर सेवानिवृत्ति से पहले ही 68 वर्षीय बृज किशोर गुप्ता माहेश्वरी ने मन में क्षेत्र एवं कृषि क्षेत्र के लिए नया करने की ठान रखी थी और मातृभूमि कालमुखी लौटते ही इसे कर्मभूमि बना दिया। ग्राम की धरती पर कदम रखते ही अपने पैतृक बंजर पड़ी भूमि लगभग 11 एकड़ बेड़ी तोड़कर को हरा-भरा करने की ठान ली, इस कार्य में साथ दिया प्रकृति शासन एवं परिवार ने। गुप्ता के क्षेत्र में आते ही इंदिरा सागर परियोजना कि नहरों का जाल क्षेत्र में बिछ चुका था फिर पथरीली जमीन को समतल और हरा भरा करना किसी चुनौती से कम नहीं था। बड़े भाई ने जहां तन मन से साथ दिया तो वहीं इकलौते बाहर सर्विस करने बेटे ने आर्थिक मदद में कोई कसर नहीं छोड़ी। सिंचाई के स्रोत... खेत से लगभग 1600 फीट दूर बह रही नहर से पाइप द्वारा शाईफन पद्धति से खेत में पानी लाया गया, शासन की योजना अंतर्गत बलराम तालाब का निर्माण, नहर के रिसाव के पानी को नाली खुदवा कर खेत में कुएं में लाकर रिचार्ज करने की कवायद की तो दूसरी ओर साइड के नाले पर बने डेम से सिंचाई के अलावा कुएं का निर्माण भी करवाया। इसी बीच बेड़ी पर लगाए गए पौधों को हरा भरा रखने के लिए बेडी पर खंतीयां बना पाइप के जरिए उसमें पानी भर भीषण गर्मी में भी पेड़ पौधों को हरा भरा रखने की व्यवस्था की गई। विद्युत पंप के अलावा एक लाख राशि खर्च कर शासन की सब्सिडी योजना से सोलर पैनल भी लगवाया। हर तरह के लगभग 2500पेड़ पौधे.... गुप्ता की सोच है कि युवा पीढ़ी और बुजुर्गों का अनुभव तालमेल के साथ आगे बढ़े तो अपना हर सपना पूरा हो सकता है और इसी उद्देश्य को आगे लेकर उन्होंने अपने खेत में स्वयं के द्वारा कुछ पौधे तैयार किए तो कुछ खंडवा इंदौर इतना ही नहीं गुजरात तक की नर्सरी से पौधे लाकर अपने खेत में लगाएं। साईं बाग में व्यवसायिक खेती के अंतर्गत आपने 3 एकड़ में लगभग 600 पेड़ अमरूद,100 सीताफल के अलावा देसीआम, कटहल, चीकू, शहतूत, अनार, जामुन, खिरनी, इमली, विलायती इमली, नारियल, आंवला, बबूल ,सूरजना, ,गुलमोहर, नींबू, साइकस, अरीठा ,गुलाब, नीम ,महुआ, अंजन ,गुजराती खजूर, करंज ,करौंदा, चारोली ,सागौन ,काजू ,सिंदूर ,अंजीर, कचनार, बेहड़ा, समी(अस्तरा )आदि कई तरह के फूलदार ,फलदार, दुर्लभ, बेशकीमती , वनस्पति पेड़ लगाए हैं। इन पौधे एवं खेती के माध्यम से पास के गांव के कई लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। हाल ही में दूध एवं देसी खाद की आवश्यकता की पूर्ति करने के उद्देश्य से गाय लाने के पूर्व ही गौशाला एवं उनके पेयजल के लिए हौज की व्यवस्था कर दी। खेती में आप देसी खाद को ही प्रमुखता से देते हैं। लगाए गए पेड़ 4 वर्ष से 10 वर्ष के बीच हुए हैं और कुछ ने फल भी देना शुरू कर दिया है। मध्य खेत में पौधों का आकृति देकर कुटिया का निर्माण किया गया जिसमें खेत की मेड पर अंजन के पेड़ को उखाड़ने के बाद निकले तने की प्राकृतिक आकारवाली शेर, लकड़बग्घा, डायनासोर ,जैसी शक्ल वाली लकड़ी को संजो कर रखा गया है। स्वयं को स्वावलंबी बनाना होगा... श्री गुप्ता का कहना है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और यह कृषि पर आधारित भी है। परंतु विगत वर्षों देखने में आया है कि किसान शासकीय योजनाओं के चक्कर एवं राजनीतिक दलों के छलावे प्रलोभनों में आकर वह शासन पर आश्रित होने लगा है। राहत राशि, बीमा राशि जैसी योजनाएं कहीं न कहीं किसानों को आश्रित बना रही है। इसे किसानों को गंभीरता से समझना एवं सोचना होगा और स्वयं को स्वावलंबी बनाना होगा। हिन्दुस्थान समाचार/परमानंद/राजू-hindusthansamachar.in

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