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संत-महात्माओं के पैरों की रज मस्तक पर पड़ने से हो जाता है पुण्यों का उदयः स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

सिवनी, 24 फरवरी(हि.स.)। गुरू रत्नेश्वर धाम दिघोरी में चल रही मोक्षदायिनी श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन बुधवार को दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुये उखल बंधन तक की कथा का श्रवण श्रोताओं को कराया। उन्होंने कहा कि संत-महात्माओं के पीछे-पीछे चलना चाहिये, क्योंकि उनके पैरों से जो रज उड़कर मस्तक में पड़ जाती है उससे पुण्यों का उदय हो जाता है। ऐसी ही रज को भगवान कृष्ण ने खाया और पूरे ब्रम्हाण्ड का दर्शन माता यशोदा को कराया। कार्यक्रम का शुभारंभ सुबह गुरु रत्नेश्वर भगवान को छप्पन भोग लगाकर किया गया। ज्योतिष मठ की स्वर्ण जयंती के अवसर पर उनसे जुड़े और दिवंगत हो चुके ऐसे परिवारों का सम्मान किया, जिन्होंने हर कार्यक्रम में शारीरिक, मानिसक और आर्थिक सहयोग प्रदान किया। भागवत कथा के अंत में ग्वाल बालों के द्वारा अहीरी नृत्य का मंचन किया गया और नागपुर से आई हुई शंकराचार्य नाटिका की प्रस्तुति दी गई। शाम को महाराजश्री ने प्रवचन देते हुये भाई और बहन के अटूट प्रेम का बखान किया। उन्होंने कहा कि भाई और बहन का अटूट प्रेम और कहीं नहीं मिलता। बहन ने भाई की रक्षा के लिये पहले ही अवतार ले लिया था और कंस के हाथों से अपने भाई कृष्ण की रक्षा की थी। बंदीगृह में बंद देवकी को जब कन्या रत्न की प्राप्ति हुई और द्वारपालों ने यह जानकारी कंस को दी तो उसने उस कन्या को भी मारना चाहा। जब वह कन्या का वध करना चाह रहा था तब बहन देवकी ने अपने भाई कंस से याचना भी की कि तुम्हारा वध तो बालक के हाथों होने की भविष्यवाणी है, फिर इस कन्या को क्यों मार रहे हो? इसके बाद भी कंस ने उस कन्या को पटकना चाहा लेकिन वह उनके हाथ से छूटकर ब्रम्हाण्ड में चली गई और भविष्यवाणी हुई कि तेरा मारने वाला जन्म ले चुका है। उन्होंने कहा कि बहन भाई के लिये सब कुछ सहने को तैयार रहती है और यही स्थिति भाई की रहती है कि वह उसकी रक्षा के लिये सब कुछ कुर्बान कर देता है। महाराजश्री ने कहा कि भविष्यवाणी होने पर कंस ने अपने मंत्रिमंडल को आमंत्रित किया और उससे सलाह मंत्रणा की। आपने बताया कि मंत्रिमंडल के सदस्य भी यदि बुद्धिहीन होते हैं तो वे अपने राजा को गलत शिक्षा देते हैं। मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों ने कहा कि कुछ समय पहले जन्मे सभी बालकों को मरवा दिया जाये, कुछ ने सलाह दी कि पूरे गोकुल में आग लगा दी जाये, अंततरू निर्णय हुआ कि नवजात शिशुओं को मारने की जिम्मेदारी पूतना को दी जाये। बुरे काम से घिरे लोगों को ही पूतना कहा जाता है। पूतना जब अपने वक्ष स्थल पर जहर लगाकर कृष्ण को मारने पहुंची तो भगवान श्रीकृष्ण ने आंख बंद कर लिये। उन्होंने बताया कि भगवान ने यहाँ आंख रूद्र यानि शंकर का स्मरण करने के लिये बंद की थी, ताकि यह जहर वह पी लें और दूध का पान वे स्वयं कर लें। कारण यह है कि भोलेनाथ ने समुद्र मंथन में जहर पीया था और जहर का पान वे ही करते हैं। महाराजश्री ने कहा कि अच्छे काम में धन लगाकर फिर भोजन करना चाहिये। भोजन करने के पूर्व साधु-संतों को भोजन करायें और फिर स्वयं भोजन करें जो फलों से युक्त होता है। आपने कहा कि यज्ञ ब्राम्हण और गायों से ही घर शुद्ध होता है। ब्राम्हण मंत्र का उच्चारण करते हैं और उन्हीं उच्चारणों से फल की प्राप्ति होती है। हवन या अनुष्ठान में शुद्ध गाय का देशी घी उपयोग में लाना चाहिये। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि भूखे और दरिद्र व्यक्ति से हमें कभी घृणा नहीं करनी चाहिये। यदि वह कुछ मांगता है तो यथायोग्य उसकी सहायता करनी चाहिये। भूखे को भोजन करायें और वस्त्रहीन को वस्त्र पहनायें। उन्होंने उदाहरण देते हुये कहा कि एक सज्जन को जब भगवान ने स्वप्न में कहा कि मैं कल ठीक 12 बजे तुम्हें दर्शन देने आऊंगा तो उनके आगमन की व्यापक तैयारी की गई। स्वादिष्ट व्यंजन बनाये गये। भगवान जब दूसरे दिन दरिद्र का रूप धारण कर उसके घर पहुंचे तो उसने उसे भगा दिया। उसने कहा कि मुझे बहुत भूख लगी है थोड़ा सा भोजन दे दो तो भी उसे नहीं दिया गया। अंततरू वह चला गया और बाद में भगवान ने उसी रूप में उन्हें दर्शन देते हुये कहा कि मैं ही भगवान हूं। तुम लोगों ने पहचाना नहीं। महाराजश्री ने कहा कि इस उदाहरण का भाव यह है कि भूखे को भोजन और वस्त्रहीन को वस्त्र प्रदान करना चाहिये। हिन्दुस्थान समाचार/रवि सनोडिया

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