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जिले के किसानों को मिर्ची की फसल ने किया आकर्षित, बड़वानी से ला रहे पौधे

मंदसौर, 16 जून (हिस)। जिले में मानसून दस्तक दे सकता हैं। किसानों ने बोवनी की तैयारी कर ली है। कुछ ने हरी मिर्ची की खेती शुरू की है। वे लाभ कमा रहे हैं। देहरी के किसान महेश कुमार शर्मा ने बताया कुछ सालों से फसल का लागत खर्च नहीं निकल पा रहा। अन्य फसलें लगाकर लाभ कमा रहे हैं। किसान रूपचंद पाटीदार ने बताया मिर्च की खेती में सोयाबीन से अधिक फायदा मिल रहा हैं। इस फसल से एक बीघे में 80 हजार से एक लाख रुपये तक मिल जाता है सोयाबीन में लाभ का चौथाई भाग भी मुश्किल से मिलता है। मिर्ची के पौधों की रोपाई इस महीने शुरू हो गई है। पौधों को बड़वानी से मंगाया जा रहा हैं। देसी मिर्ची के एक पौधे की लागत 2- 3 रुपये है तथा शिमला मिर्ची के पौधे की लागत 3 से 4 रुपये है। इस फसल को कम से कम 1 बीघे से अधिक लगाने पर इसकी लागत का भार किसान पर नहीं पड़ता हैं। किसान बबलू पाटीदार ने बताया कि पछले सीजन में 2 बीघे में मिर्ची की फसल तैयार की थी। जिसमें एक लाख से भी अधिक का मुनाफा मिला था। मौसम के मिजाज अहम भूमिका निभाता है। जिस खेत में सब्जी वाली फसल लगाई जाती है। उसमें पहले जुताई किया जाता है। खेत में खाद डालकर उठी क्यारी (बेड) बनाई जाती है। ड्रिप लाइन बिछाकर प्लास्टिक मल्चिंग पन्नी को बिछाया जाता है। फिल्म के दोनों किनारों को मिट्टी की परत से दबा दिया जाता है। फिर उस पन्नी पर गोलाई में निर्धारित दूरी तय कर के छिद्र करते हैं। छिद्रों में ही मिर्ची के पौधों का रोपण किया जाता है। इस तकनीक से खेत में पानी की नमी बनी रहती है। किसान पाटीदार के अनुसार मिर्ची की खेती के लिए खेत में बेड़ तैयार करते हैं। एक बीघे में ड्रिप के 8 मंडल लगते हैं। जिनका खर्च 16 हजार के करीब हैं। मल्चिंग पन्नी द्वारा बेड ढंकते हैं। पन्नी में तय दूरी पर छेद करके मिर्ची के पौधे लगाते हैं। पन्नी का खर्च 5 हजार रुपए है। यदि पौधे में वायरस आ जाता है तो दवाइयों पर 15 से 20 हजार रुपये खर्च होते हैं। खाद व इन खर्चों के बाद भी 50 फीसदी तक कमा लेते हैं। हिन्दुस्थान समाचार / अशोक झलौया

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