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चंद्रप्रभु जिनालय की पाठशाला का वार्षिकोत्सव मना, कलश की हुई स्थापना

गुना, 26 फरवरी (हि.स.)। शहर के त्रिमूर्ति कॉलोनी स्थित चंद्रप्रभु जिनालय की आचार्यश्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला का 16वां वार्षिकोत्सव एवं कलश स्थापना समारोह शुक्रवार को उत्साह के साथ मनाया गया। इस मौके पर मुनिश्री अभय सागरजी महाराज एवं आर्यिका पवित्रमति माताजी के ससंघ सानिध्य में कलश स्थापना, जिनवाणी विराजमान, कार्यालय उद्घाटन सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुए। इस अवसर पर बच्चों एवं अभिभावकों को संबोधित करते हुए आर्यिका पवित्रमति माताजी ने कहा कि लौकिक शिक्षा बच्चों को बड़ा अधिकारी तो बना देंगी, लेकिन सदाचारी नहीं बना पाएंगी। एक सच्ची माँ अपने बच्चे को धार्मिक संस्कार देने उसे पाठशाला भेजेगी तो बड़े होकर बच्चा सर्विस के साथ आपकी सेवा भी करेगा। इस अवसर पर मुनिश्री निरीह सागरजी महाराज ने कहा कि अन्याय अनीति से की गई कमाई का परिणाम अच्छा नही निकलता। उन्होंने कहा कि धर्म बासुरी के समान है, जबकि नगाड़ा संसारिक चकाचौंध है। बांसुरी की आवाज हमेशा सुरीली लगती है लेकिन नगाड़े की कभी कभार ही। इस मौके पर प्रभात सागरजी महाराज ने कहा कि आज हमारे बच्चों को हमारी मार्तभाषा हिंदी भी ठीक से नहीं आती, संस्कृत की तो बात दूर की है। लौकिक शिक्षा के साथ साथ धार्मिक संस्कार और ज्ञान देने के लिए पाठशाला भेजे। उन्होंने कहा कि बच्चों को इतना लाड़ प्यार भी ना दो कि वह सिर पर बैठ जाएं। समय-समय पर डांट भी जरूरी है। इस अवसर पर मुनिश्री अभय सागरजी महाराज ने कहा कि भागमभाग जीवन मे इंसान धर्म का शर्ट काट चाहता है। जीवन में जो क्रियाएं हम कर रहे हैं, उनमें अधिकांशराग और द्वेष की क्रियाएं हंै। समता मूलक क्रियाएं हम कम करते हैं। मुनिश्री ने कहा कि आज हम जो कुछ भी हैं। बचपन में पाठशाला में मिले संस्कारों के कारण हैं। शिक्षा तो कहीं भी मिल जाएंगे, लेकिन संस्कार सिर्फ पाठशाला में ही मिलेंगे। इस मौके पर पाठशाला की संचालिका प्राची जैन ने बताया कि पाठशाला की स्थापना मुुनिश्री प्रशांत सागरजी एवं निर्वेग सागरजी महाराज की प्रेरणा से हुई थी। कार्यक्रम के दौरान पाठशाला के बच्चों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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