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जन्म-दिवस: पर्यावरण मित्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

भोपाल, 04 मार्च (हि.स.)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुक्रवार, 05 मार्च को अपना 62वां जन्मदिन मनाएंगे। उनके व्यक्तित्व का सकारात्मक पक्ष यह है कि वे प्रकृति में अगाध श्रद्धा रखते हैं। रोज एक पौधा लगाने का संकल्प, नर्मदा की पवित्रता बचाने का संकल्प और हरियाली को सम्हालने का संकल्प इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। जननेता का सबसे बड़ा गुण यही है कि वह लोक शक्ति में अटूट विश्वास करता है। लोक शक्ति एक अमूर्त वस्तु है। लोकतंत्र में इसका प्रदर्शनकारी स्वरूप समय-समय पर प्रकट और अभिव्यक्त होता रहता है। कभी शहर बंद हो जाते हैं, कभी यातायात रूक जाता है। इसके विपरीत विशाल देश के किसी भू-भाग पर चंद लोग मिलकर मृत नदी को जीवित कर देते हैं। बंजर भूमि पर हरियाली बिछा देते हैं। रचनात्मक और नकारात्मक दोनों स्वरूप देखने को मिलते हैं। शिवराजसिंह चौहान ने जो निर्णय लिये उनमें स्पष्ट रूप से यह रेखांकित होता है कि वे पर्यावरण के लिये जनशक्ति का रचनात्मक उपयोग करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री के रूप में जनता की सोच, समझ, विवेक और सामर्थ्य पर अटूट विश्वास रखने वाले प्रकृति की आराधना करने वाले शिवराज सिंह को जन्म दिन की बधाइयाँ। नर्मदा से एकाकार नर्मदा मैया की सेवा का जो संकल्प शिवराज जी ने लिया है वह नमनयोग्य है। यह जीवन और समाज को बचाने का संकल्प है। हर नर्मदा सेवक पर बड़ी जिम्मेदारी है। हमारा जीवन तभी बचेगा जब हमारी नर्मदा मैया में भरपूर पानी होगा। भरपूर हरियाली होगी। उनकी नर्मदा सेवा यात्रा कई अर्थों में अपूर्व अनुभव था। यह आस्था, विश्वास और संकल्प की यात्रा थी जिसकी झलक पूरे विश्व ने देखी। मुख्यमंत्री के लिये दरअसल नर्मदा मैया की सेवा का यह मिशन सामाजिक, पर्यावरणीय और आध्यात्मिक मिशन है। नर्मदा सेवा यात्रा ने पूरे देश में नदियों के प्रति कर्त्तव्य बोध जाग्रत किया। नदियों की सेवा के संकल्प से गहन जल चेतना भी उत्पन्न हुई और आज भी उससे सभी नागरिक विस्मृत नहीं हुए है। पर्यावरण अनुकूल विकास शिवराज सिंह चौहान के मार्गदर्शन में राज्य सरकार और समाज एक दूसरे के करीब आये हैं और विकास पथ पर साथ-चल रहे हैं। यह उनकी कार्य-शैली और व्यक्तित्व का करिश्मा है। उन्होंने यह बताया कि विकास के लिये समाज की शक्ति का उपयोग कैसे किया जा सकता है। विकास योजनाओं को जन आंदोलन कैसे बनाया जा सकता है और सेवाओं तक आम लोगों की आसान पहुँच कैसे बनाई जा सकती है। दर्शन-शास्त्र में गहरी रूचि रखने वाले शिवराज सिंह को मनोविज्ञान की गहरी समझ है। आम लोगों से लगातार संवाद करते हुए वे सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण करते रहते हैं। विवेक और ज्ञान पर विशेषाधिकार किसी एक व्यक्ति का नहीं होता। रोजाना जीवन से संघर्षशील आम लोग भी विवेक सम्पन्न हैं। यही विनम्रता उन्हें लोगों का अपना मुख्यमंत्री बनाती है और उन्हें लोगों के दिलों तक ले जाती है। पौधे लगाने का नागरिक संस्कार मत्स्य-पुराण में अद्भुत श्लोक है जिसमें वृक्ष को दस पुत्रों के समान बताया गया है। आज हमने मिलकर जो पौधे लगाये हैं वे कल वृक्ष बनेंगे और वर्षों तक हमारी रक्षा करते रहेंगे। नदी और पर्यावरण संरक्षण के लिये चलाये गये जन-अभियान को जनता का समर्थन मिला और अब यह लोक-व्यवहार में साफ दिख रहा है। मुख्यमंत्री का पौधा लगाने का संकल्प एक ऐसा अभियान है जिसमें समाज की अगुवाई से पारीस्थितिकीय बदलाव लाने में सफलता मिलेगी। शिवराज ने पौधे लगाने का जो नागरिक संस्कार देने की पहल की है वह लोगों को पर्यावरण के आध्यात्म से जुडने के लिये प्रेरणा देता है। भारतीय संस्कृति में पौधों का रोपण शुभ कार्य माना गया है। भारतीय उपासना पद्धति में वृक्ष पूज्यनीय है क्योंकि उन पर देवताओं का वास माना गया है। गौतम बुद्ध का संदेश है कि प्रत्येक मनुष्य को पाँच वर्षों के अंतराल से एक पौधा लगाया चाहिये। 'भरत पाराशर स्मृति' के अनुसार जो व्यक्ति पीपल, नीम, बरगद और आम के पौधे लगता है और उनका पोषण करता है उसे स्वर्ग में स्थान मिलता है। भारतीय संस्कृति में पौधों का रोपण शुभ कार्य माना गया है। कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में 'वृक्षायुर्वेद' का उल्लेख है। सम्राट बिंबसार के चिकित्सक जीवक को तक्षशिला में अध्ययन के अंतिम वर्ष में उनके शिक्षक ने ऐसी वनस्पति खोज लाने के लिये कहा जिसमें कोई औषधीय गुण न हो। जीवक ऐसी कोई वनस्पति नहीं ढूंढ पाये। प्रत्येक पौधे में औषधीय गुण होते है। संपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि उद्योग ऐसे पौधों पर ही टिका है। मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से अपनी चिंता जाहिर की है कि हरित आवरण पर जैविक दबाव लगातार बढ़ रहा है। मानव बसाहट का विस्तार जंगलों तक पहुंच गया है। वन सम्पदा आधारित आजीविका के संसाधन कम हो रहे है। इस दृष्टि से बड़ी संख्या में पौधों का रोपण कर वन संपदा, नदियो, जल स्त्रोतो को समृद्ध बनाना अनिवार्य हो गया है। विनाश से बचने के लिये समाज को प्रकृति-आराधना की परंपरा पुनर्जीवित करते हुये वृक्षों के साथ जीना सीखना होगा। मनुष्य से गहरा नाता मुख्यमंत्री का कहना है कि नई पीढ़ी को नीम, आंवला, पीपल, बरगद, महुआ, आम जैसे परंपरागत वृक्षों की नई पौध तैयार करने की अवधारणा समझाना आवश्यक है। वनस्पतियों का जो सम्मान भारत भूमि पर है वह अन्यत्र नहीं है। पाश्चात्य विद्वानों, दार्शनिकों ने भी प्रकृति का आदर करना भारतीय धर्मग्रंथों और परंपराओं से ही सीखा है। यदि प्रकृति के अलौकिक स्पंदन और माधुर्य को अनुभव करना हो तो उसकी शरण में रहो। मनुष्य का वृक्षों से गहरा आत्मीय संबंध है। पौधों में मनुष्य के समान संवेदनाएँ होती हैं यह सिद्ध हो चुका है। मनुष्य के सभी धार्मिक, सांस्कृतिक संस्कारों में वृक्षों की मंगलमय उपस्थिति है। कई भारतीय संस्कारों, व्रतों, त्यौहारों के माध्यम से वृक्षों की पूजा होती है। वृक्षों के नाम से कई व्रत रखे जाते है जैसे वट सावित्री व्रत, केवड़ा तीज, शीतला पूजा, आमला एकादशी, अशोक प्रतिपदा, आम्र पुष्प भक्षण व्रत आदि। 'मनु स्मृति' में वर्णित है कि वृक्षों में चेतना होती है और वे भी वेदना और आनंद का अनुभव करते है। समाज के गैर जिम्मेदार व्यवहार से यदि उनकी मृत्यु होती है तो समाज को उतना ही दु:ख होना चाहिये जितना प्रियजन की मृत्यु पर स्वाभाविक रूप से होता है। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश

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