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धर्म हो या समाज दोनों ही सभी प्रकार के भेदभाव से पूर्णत: मुक्त रहें

गुना, 27 फरवरी (हि.स.)। संत रविदास की शिक्षाएं विषमता से रहित कुरीति मुक्त भारतीय ज्ञान विज्ञान से युक्त समरस समाज के निर्माण में समर्थ हैं। उन्होंने मुगल पराधीनता के काल में अपने हिंदू समाज में ज्ञान एवं भक्ति रस की धारा प्रवाहित कर बलात धर्मांतरण से बचाने में महती भूमिका निभाई। वे संपूर्ण हिंदू समाज के गौरव हैं। हम सबको उनकी शिक्षाओं को आत्मसात कर उनके उद्घोष को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। उक्त उदबोधन भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांतीय अधिकारी पंडित तुलसीदास दुबे ने शनिवार को संत रविदास जयंती के अवसर पर आयोजित विचार गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता दिए। संत रविदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भारतीय शिक्षण मंडल एवं सामाजिक समरसता मंच द्वारा श्रीराम कॉलोनी स्थित संत रविदास मंदिर पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि किशनलाल अहिरवार ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं के शासन में निराश हताश हिंदू समाज में संत रविदास ने राष्ट्रहितों को सर्वोपरि मानकर अपने भक्ति ज्ञान द्वारा आशा विश्वास एवं ऊर्जा का संचार किया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे पंडित रविंद्र कुमार शर्मा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि संत रविदास का स्पष्ट विचार था कि धर्म हो या समाज दोनों ही क्रियाकलाप सभी प्रकार के भेदभाव से पूर्णत: मुक्त रहें। अध्यक्षता कर रहे शंकर लाल अहिरवार ने कहा कि रविदास विधर्मी मुगलों के काल में हिंदुओं की दुर्दशा एवं धर्मांतरण से बहुत आहत थे। जब सिकंदर लोधी ने उन्हें मुसलमान बनाने का प्रयास करने के लिए सदना नामक मौलवी को उनके पास भेजा तो उनका उत्तर था सर्वोत्तम वैदिक हिंदू धर्मा, निर्मल वा का ज्ञान। यह सच्चा मत छोडक़र मैं क्यों पढूं कुरान। इस प्रकार उनके उच्च ज्ञान एवं भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें मुसलमान बनाने आया मौलवी स्वयं ही इस्लाम छोडक़र हिंदू धर्म ग्रहण कर रामदास नाम से उनका शिष्य बन गया। गोष्ठी के दौरान रविंद्र कुमार शर्मा संयोजक भारतीय शिक्षण मंडल गुना, घासीलाल अहिरवार सहित समाज बंधु मौजूद रहे। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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