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संत शिरोमणि गुरु रविदासजी की 644 वी जयंती मनाई गई,निकाली गई शोभायात्रा

अनूपपुर, 27 फरवरी (हि.स.)। संत शिरोमणि गुरु रविदासजी की 644वी जयंती पुष्पराजगढ़ में पालकी सजा बाजे गाजे के साथ शोभायात्रा शनिवार को निकाली गई। जो नगर भ्रमण करते हुऐ समारोह स्थल स्व सहायता भवन पहुँची। जहां वक्ताओं ने बताया कि संत रविदास रैदास का जन्म वि.सं. 1433 (1376 ई.) में माघ की पूर्णिमा को काशी में चर्मकार कुल में हुआ था उनके पिता का नाम संतोख दास एवं माता का नाम कलसा देवी था, जिस दिन उनका जन्म हुआ उस दिन रविवार था इसी लिये उन्हें रविदास कहा जाने लगा। वक्ताओं ने कहा कि भारत की विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में उन्हें रोईदास रैदास व रहदास आदि नामों से भी जाना जाता है। संत रविदास जाति से चर्मकार थे लेकिन उन्होनें कभी भी जन्मजाति के कारण अपने आप को हीन नहीं समझा उन्होनें परमार्थ साधना के लिये सत्संगति के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने श्रम व कार्य के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की तथा कहा कि अपने जीविका कर्म के प्रति हीनता का भाव मन में नहीं लाना चाहिये उनके अनुसार श्रम ईश्वर के समान ही पूजनीय है ।संत ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भारत भ्रमण करके समाज को उत्थान की नयी दिशा दी। साम्प्रदायिकता पर भी चोट करते हैं उनका मानना है कि सारा मानव वंश एक ही प्राण तत्व से जीवंत है,सामाजिक समरसता के प्रतीक मदिरापान तथा नशे आदि के भी घोर विरोधी थे। वक्ताओं ने कहा समाज मे दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है उन्हें उनके हक से वंचित रखा जाता है। सामाजिक कुरीतियों बुराइयों को दूर करने के लिये हमे आज संकल्प लेना होगा जिससे एक संगठित सभ्य समाज की परिकल्पना की जा सके। हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला

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