हिंदी को प्रचलन में लाने के लिए नाटक और गीत-संगीत का बहुत महत्व : डॉ देवेंद्र
हिंदी को प्रचलन में लाने के लिए नाटक और गीत-संगीत का बहुत महत्व : डॉ देवेंद्र

हिंदी को प्रचलन में लाने के लिए नाटक और गीत-संगीत का बहुत महत्व : डॉ देवेंद्र

रांची, 25 सितम्बर ( हि.स.)। अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि मौजूदा दौर में हिंदुस्तानी हिंदी का प्रयोग बेहतर है। शर्मा ने शुक्रवार को पत्र सूचना कार्यालय व रीजनल आउटरीच ब्यूरो - रांची तथा फील्ड आउटरीच गुमला केे संयुक्त तत्वावधान में 'महात्मा गांधी और राजभाषा हिंदी' विषय पर आयोजित वेबिनार परिचर्चा में कहा कि हिंदी को प्रचलन में लाने के लिए नाटक और गीत-संगीत का बहुत महत्व है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में पहली जेनरेशन के बच्चे, जिनके माता-पिता अमेरिका में आकर बसे और उनके बच्चे यहीं पैदा और बड़े हुए, वे गीत तथा नाटक के माध्यम से हिंदी सीख रहे हैं और उसमें एक बड़ी संख्या दक्षिण भारतीय किशोरों तथा युवाओं की है। उन्होंने उस घटना का जिक्र किया जब गांधी जी ने अपने छोटे पुत्र को दक्षिण भारत में हिंदी सिखाने तथा प्रचार प्रसार करने के लिए भेजा। यह घटना बापू के हिंदी प्रेम को दर्शाती है। उन्होंने कहा गांधीजी गुजराती थे, जिन्हें सच बोलने की प्रेरणा सत्यवादी हरिश्चंद्र नाटक को देखकर मिली। गांधीजी का हिंदी प्रेम इस बात से भी प्रदर्शित होता है कि उन्होंने आमजनों के लिए जिन भजनों का चयन किया वे सभी हिंदी भाषा में ही थे, जबकि उनकी मातृभाषा गुजराती थी और गुजराती में भी कई लोकप्रिय भजन उपलब्ध थे। शर्मा ने कहा कि यह हमारे देश की विडंबना ही है कि हमारे बहुत से स्कूलों और शिक्षा संस्थानों में हिंदी बोलने पर एक प्रकार का प्रतिबंध है और बच्चों को हिंदी बोलने पर फाइन भी लगता है। रांची के संत जेवियर्स कॉलेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कमल कुमार बोस ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा की बापू का हिंदी प्रेम बहुत व्यवहारिक था। अगर हम भारत के मानचित्र पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि अधिकतर कलाकारों, पत्रकारिता से जुड़े लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा राजनीति से जुड़े लोगों की भाषा हिंदी है। हिंदी की खूबसूरती है कि यहां हर शब्द समान है - ना कोई बड़ा है ना कोई छोटा। उसी प्रकार आधे शब्द को सहायता देने के लिए पूरा शब्द हमेशा तैयार खड़ा रहता है। गांधी जी का सपना था कि सहज सरल हिंदुस्तानी जैसी हिंदी देश की राजभाषा हो। रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर हीरा नंदन प्रसाद ने वेबिनार में महात्मा गांधी के संदर्भ में हिंदी की उपयोगिता बढ़ाने के लिए इसे सरल बनाने पर जोर दिया। हिंदुस्थान समाचार /विनय/वंदना-hindusthansamachar.in

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