संकल्प हो तो, होते हैं कार्य पूर्ण: बिरेंद्र
संकल्प हो तो, होते हैं कार्य पूर्ण: बिरेंद्र

संकल्प हो तो, होते हैं कार्य पूर्ण: बिरेंद्र

रांची, 07 अगस्त (हि.स.) । विश्व हिंदू परिषद( विहिप) झारखंड के प्रांत मंत्री बिरेंद्र साहू ने शुक्रवार को शुक्रवार को कहा कि 1528 ई० में आक्रांताओं के द्वारा श्रीरामजन्म भूमि में स्थित श्रीरामलला का मंदिर को क्षति पहुंचाने का कार्य किया गया था। तब से श्रीरामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए 492 वर्षों से लगातार संघर्ष चलता रहा। समस्त हिंदू जनमानस में यह संकल्प था कि श्री राम जन्मभूमि पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का है तथा इसे वापस लेना ही है। इसके लिए लाखों कार्यकर्ता बलिदान भी दिए है। इस संघर्ष के परिणाम का संयोग 5 अगस्त, 2020 को रहा। करोड़ों लोगों को पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम पर आस्था रहा है। मुझे भी आस्था है, परंतु संकल्प क्या होता है? यह मुझे 5 अगस्त को अनुभव हुआ। भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व को यह पता था कि 5 अगस्त को श्रीरामजन्मभूमि में भव्य मंदिर निर्माण के लिए भूमि-पूजन होने वाला है। मैं भी विश्व हिंदू परिषद, झारखण्ड का प्रांत मंत्री हूंँ। इस निमित्त प्रांत के लिए कई कार्यक्रम तो बनाया ही था। मेरा स्वयं का भी कई कार्यक्रम बना हुआ था। परंतु न जाने 5 अगस्त को बिलकुल सुबह 3-4 बजे से ही न जाने क्यों ऐसा महसूस हो रहा था कि आखिर हम हिंदू जनमानस को किस संकल्प का परिणाम प्राप्त हो रहा है। मुझे लगा क्या संकल्प वास्तव में पूर्ण होता है? यदि पूर्ण होता है तो उसमें क्या-क्या होता है? यह जानने की जिज्ञासा हुई। तब मैंने एकाएक मन में संकल्प लिया कि आज स्वयं संकल्प लेकर भगवान पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन चरित्र से जुड़ा। श्रीरामचरित्रमानस का अखंड पाठ करुँ। मैं करता भी हूंँ। दुर्गा पूजा में नवाह्न पारायण जिसमें 9 दिनों में पढ़ने की परंपरा रही है। रामचरित्रमानस का अखंड पाठ कितने घंटा में पूर्ण होता है? यह मुझे स्मरण में नहीं था। मुझे लगा 16-18 घंटा के बीच समाप्त कर दूंँगा और संकल्प के साथ सुबह 8:00 बजे (5अगस्त) प्रारंभ किया। प्रारंभ के 12 घंटा निकलने के बाद मुझे आभास हो गया था कि और 12 घंटा लगेंगे। फिर चुकी अकेले संपूर्ण पाठ करना था ऐसे में किसी का साथ लेना उचित नहीं लग रहा था। बाद का 13 घंटा तक पं० गोविंद झा भी मेरे साथ-साथ ही पाठ करते रहे। अंततः यह पाठ 25 घंटा 18 मिनट के बाद पूर्ण हुआ। इसे पूर्ण करने में मुझे शारीरिक कठिनाइयांँ बहुत हुई। उपवास में रहते हुए 25 घंटा लगातार बैठने का पहले से मेरा कभी कोई भी कार्य/अनुष्ठान नहीं हुआ था, इसका अनुभव भी नहीं था कि मुझे कष्ट क्या-क्या हो सकती है। परंतु मैंने संकल्प लेकर बैठ गया। हाँ, 25 घंटे 18 मिनट के बाद मैं पाठ पूर्ण कर पाया। मेरे गला, पैर और कमर की पीड़ा काफी दु:खदाई था, फिर भी मेरा संकल्प 54 वर्ष की अायु भी इसे डिगा नहीं पाया। हाँ, कल (6अगस्त) मुझे दिनभर सोकर व विस्तर में लेटफर बिताना पड़ा। यह संकल्प पूर्ण होने के बाद मुझे यह अनुभव हो गया कि 492 वर्ष के बाद आखिर यह मंदिर क्यों बन पा रहा है? हाँ अब मैं यह कह सकता हूँ कि पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का मंदिर के लिए 100 करोड़ हिंदू जनमानस की आस्था तथा संकल्प का परिणाम ही तो है। अर्थात संकल्प हो तो, कार्य अवश्य पूर्ण होते हैं। हिंदुस्थान समाचार/ विकास/ विनय-hindusthansamachar.in

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