छठ महज पर्व नहीं पर्यावरण संरक्षण का अनुष्ठान है
छठ महज पर्व नहीं पर्यावरण संरक्षण का अनुष्ठान है

छठ महज पर्व नहीं पर्यावरण संरक्षण का अनुष्ठान है

पाकुड़,19नवम्बर(हि.स.)। छठ न सिर्फ लोक आस्था का महापर्व है बल्कि यह मूलतः पर्यावरण संरक्षण का अनुष्ठान है।यह प्रकृति के प्रथम ऊर्जा श्रोत सूर्य की उपासना है।जो भारतीय संस्कृति से सिंचित व संरक्षित यह महापर्व प्रकृति व मनुष्य के बीच समन्वय स्थापित करता है।यही वजह है कि घर से लेकर घाट तक लोक सरोकार व आपसी सहयोग व सद्भाव के दृश्य अनायास ही दिखाई दे जाते हैं इस मौके पर। वहीं अनुष्ठान के आयोजन में उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियाँ प्रकृति के अनुकूल होती हैं।धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कार्तिक अमावस्या के छठे दिन अग्नि व सोम का समान रूप से होने वाले मिलन के मौके पर सूर्य की सातों रश्मियों से संजीवनी फूट पड़ती है, जो प्रकृति व मनुष्य दोनों के लिए ही वरदान मानी जाती है। सूर्योपासना से जनमानस क्रियाशील, ऊर्जावान व जीवंत हो उठता है।चार दिवसीय इस अनुष्ठान की समाप्ति उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होता है। मौके पर व्रती अपनों के हाथों अर्घ्य दिलवाकर सूर्य की बहन षष्ठी अथवा छठ माता को विदाई देती हैं, जो प्रकृति से मनुष्य के संबंधों की प्रगाढ़ता व तादात्म्य को ही दर्शाता है। संपूर्ण अनुष्ठान के दौरान स्वच्छता का सर्वाधिक ख्याल रखा जाता है।इतना ही नहीं यह भारतीय संस्कृति की उत्कृष्टता का भान भी कराता है जहाँ न सिर्फ उगते बल्कि डूबते सूर्य की भी बगैर किसी दिखावा अथवा आडंबर के विधिवत पूजा(अर्घ्य) की जाती है। साथ ही लोक आस्था के इस महापर्व पर उपयोग में लायी जाने वाले सभी संसाधन,यथा- मिट्टी का चूल्हा, मिट्टी के बर्तन, आम की सूखी लकड़ियाँ आदि प्राकृतिक रूप में होते हैं।जो अनुष्ठान के बहाने सौर ऊर्जा की महत्ता को बताने के साथ ही जल के साथ हमारे संवेदनशील संबंधों को ही रेखांकित करते हैं।वर्तमान कोरोना काल में हमें इस महामारी से बचने के लिए दिए गए दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन करते हुए अनुष्ठान को संपन्न करने पर बल देना जरूरी है। हिन्दुस्थान समाचार/ रवि / वंदना-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in