हौसले को मिले पंख, शिक्षा का अलख जगा रहीं दिव्यांग बसंती
धनबाद, 08 मार्च (हि. स.)। जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का। इसी सोच को दिव्यांग बसंती ने सार्थक किया है। महिला दिवस के मौके पर हम आपको एक ऐसी महिला के हौसले से रू-ब-रू करा रहे हैंं, जो दिव्यांग होते हुए भी अपने पैरों के सहारे सैकड़ों छात्र-छात्राओं में शिक्षा का अलख जगा देश को एक बेहतर भविष्य देने में जुटी है। धनबाद के सिंदरी स्थित डोमगढ़ की रहने वाली दिव्यांग बसंती कुमारी (42) रोड़ाबांध स्थित उतकार्मिक माध्यमिक विद्यालय में एक 'पारा टीचर' के रूप में काम करती हैं। बसंती बचपन से ही दिव्यांग है। उनके दोनों हाथ तो हैं पर काफी छोटे हैं। इस वजह से बसंती अपने हाथों का इस्तेमाल चाह कर भी नहीं कर पाती हैं। इस वजह से वे अपनी आवश्यक दिनचर्या अथवा दूसरे अन्य काम अपने पैरों के सहारे ही करती हैं। बसंती सैकड़ों छात्र-छात्रओं को अपने पैरों के सहारे ही अच्छी शिक्षा दे रही हैं। बसंती के इस हौसले से बच्चे भी काफी खुश रहते हैं और मन लगा कर पढ़ाई करते हैं। बसंती के दोनों हाथ बचपन से ही छोटे हैं। पढ़ने और पढ़ाने का शौक रखने वाली बसंती को उसके छोटे हाथों के कारण बचपन में स्कूल जाने के लिए भी काफी जद्दोजहद करना पड़ा। दरअसल, इस दिव्यांगता के कारण उसके माता पिता उसे स्कूल भेजना नहीं चाहते थे। पर बसंती ने हार नही मानी और घर में ही पैर के सहारे कॉपी के पन्नों पर लिखने लगी। यह देख अभिभावकों ने उसका दाखिला स्कूल में करा दिया। अंततः बसंती 1993 में मैट्रिक परीक्षा में उत्तीर्ण हुई। इसके बाद 1995 में प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट और फिर 1999 में बीए और 2009 में बीपीए पूरा किया। बसंती के पिता सिंदरी एफसीआई में फोरमैन के पद पर कार्यरत थे। एफसीआई में कार्य के दौरान ही उन्हें पैरालिसिस का अटैक आया और इसके बाद 2008 में उनकी मृत्यु हो गई। इससे बसंती के परिवार के सामने जीविका चलाने की समस्या उत्पन्न हो गई। बसंती 5 बहनों में सबसे बड़ी थीं, जिसके कारण परिवार का पूरा भार उनके ही कंधों पर आ पड़ा। बिना हार माने घर घर जा कर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के साथ बसंती ने नौकरी की भी तैयारी शुरू कर दी। वर्ष 2005 में बसंती का चयन पारा शिक्षका के रूप में हुआ। उस वक्त बसंती को तनख्वाह के रूप में सरकार से प्रति माह 2 हजार रुपये मिल रहे थे। बसंती ने कई बार टैट में भी सम्मिलित हुई पर दो-चार नम्बरो से वह पीछे रह गयीं। इस कारण वह स्थायी शिक्षका नहीं बन पाईं।इसका दर्द बंसती को आज भी है। बसंती ने बताया कि 3 बहनों की शादी तो हो गई परन्तु सबसे छोटी बहन की शादी करने की जिम्मेदारी अभी भी उसके ऊपर है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से पारा शिक्षकों मानदेय अब 2 हजार से बढ़ाकर 12 हजार रुपये कर दिया गया है। परन्तु इस महंगाई के दौर में 12 हजार रुपये में जीवन निर्वाह कर पाना बहुत ही कठिन हो रहा है। बसंती ने मीडिया के माध्यम से राज्य सरकार से आग्रह किया है कि उसे दिव्यांग कोटे से विशेष श्रेणी में स्थायी रूप से शिक्षक की नौकरी दी जाए, ताकि परिवार का भरण पोषण हो सके। हिन्दुस्थान समाचार/ वंदना/ प्रभात ओझा