झारखण्ड की धरती सदियों से वीरों की धरती रही है : रामेश्वर
रांची, 05 अप्रैल (हि. स.)। राजधानी के नामकोम स्थित दुर्गा सोरेन चौक के समीप चुआड़ विद्रोह के महानायक, क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो के शहादत दिवस पर सोमवार को श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में झारखण्ड के वित्त व खाद्य आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव उपस्थित थे। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में खिजरी विधायक राजेश कच्छप, पर्व सांसद रामटहल चौधरी, विधायक लंबोदर महतो, पूर्व विधायक अमित महतो, कांग्रेस प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद आदि उपस्थित थे। शहादत दिवस सह श्रद्धांजलि कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व मंत्री केशव महतो कमलेश व संचालन राकेश किरण महतो ने किया। उरांव ने कहा कि झारखण्ड की धरती सदियों से वीरों की धरती रही है। जिन महापुरूषों ने देश की आजादी के लिए जल, जंगल, जमीन के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया और अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं अस्मिता की रक्षा के लिए प्राणों की आहूति दी। यहांं हर 12 वर्षों में संघर्ष होता था। आज भी हम सभी यहांं ऐसे ही अमर शहीद रघुनाथ महतो को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए उनका नमन करते हुए कृतज्ञता अर्पित करने को उपस्थित हैं। उन्होंने कहा कि शहीद रघुनाथ महतो का जन्म वर्तमान सरायकेला खरसावां जिला के नीमडीह प्रखण्ड के घुटियाडीह गांव में हुआ था। बचपन से ही उनके मानस पटल पर देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। वे सदैव अन्याय, अत्याचार एवं शोषण के खिलाफ लड़ने वाले वीर सपूत थे। अंग्रेज जब किसानों से जबरन कर की वसूली करते थे। यहां तक की आदिवासियों की जमीन छीनकर जमीदारों के हाथों हस्तांतरण करते थे। दूसरे क्षेत्र से आये हुए लोगों को यहां बसाया करते थे, तब उन्होंने ‘‘अपना गांव अपना राज-दूर भगाओ अंग्रेज राज’’ का उद्घोष दिया था। उरांंव ने कहा कि ऐसे महापुरुषों के संघर्ष का परिणाम है कि आजाद भारत में अलग झारखण्ड राज्य में रह रहे हैं । झारखण्ड में हुए संघर्षों में सभी सामाज के लोगों का हाथ रहा है। विधायक राजेश कच्छप ने कहा कि शहीद रघुनाथ महतो द्वारा देश की आजादी के लिए शुरू किया गया संघर्ष धीरे-धीरे आग की ज्वाला की तरह अंग्रेजों के खिलाफ पूरे जंगल महल में फैला। ये एक कुशल रणनीतिकार भी थे। इनके भय से ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लोग भी कांपते थे। रघुनाथ महतो बहुत तेजी से जंगल महल में अंग्रेजों के खिलाफ एक सशक्त नेता के रूप में उभरे, जिन्हें मुख्यतः कुड़मी, संथाल एवं भूमिज का पूर्ण सहयोग मिला। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को चुआड़ आन्दोलन का नाम दिया । हिन्दुस्थान समाचार/कृष्ण