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जेटीडीसी के महाप्रबंधक के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर

रांची, 08 जून (हि.स.)। झारखंड पर्यटन विकास निगम (जेटीडीसी) के महाप्रबंधक आलोक प्रसाद के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है। आलोक प्रसाद की नियुक्ति और एसीबी में उनके खिलाफ चल रही जांच के बावजूद उन्हें प्रोन्नति देने सहित उनकी डिग्री की जांच की मांग को लेकर झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। पलामू के रहने वाले आरटीआई कार्यकर्ता पंकज यादव ने झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अलोक कुमार की डिग्री और उनकी प्रोन्नति पर सवाल खड़े करते हुए इनकी सम्पति की जांच सक्षम एजेंसी से करवाने की मांग की है। प्रार्थी पंकज यादव के मुताबिक 1988 में तत्कालीन बिहार पर्यटन विकास निगम में साक्षात्कार द्वारा अस्थाई कर्मचारी के रूप में नियुक्त आलोक प्रसाद का चयन हुआ था, जो फिलहाल झारखंड पर्यटन विकास निगम के महाप्रबंधक है। उन्होंने कहा कि झारखंड पब्लिक सेवा के लिए सृजित पद पर एक अस्थाई कर्मचारी महाप्रबंधक के रूप में अपनी सेवा दे रहा है। यह नियम विरुद्ध है। इतना ही नहीं, आलोक प्रसाद पर निगरानी ब्यूरो में पी.ई. संख्या 12 -13 की जांच चलने के दौरान ही उप महाप्रबंधक पर पदोन्नति दी गई। अब वह अपने पैसे और पकड़ के बल पर झारखंड पर्यटन विकास निगम के महाप्रबंधक के पद पर आसीन हैं। पंकज यादव ने यह भी आरोप लगाया है कि आलोक प्रसाद की डिग्री भी शक के घेरे में है और अगर इस पर जांच हुई तो मैट्रिक से लेकर पीएचडी तक की डिग्री फर्जी साबित होगी। उन्होंने पर्यटन विकास निगम में करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार की बात कही है। पंकज यादव ने कहा कि आलोक प्रसाद की नियुक्ति 03.07.1988 को बिहार पर्यटन विकास निगम के प्रबंधक पद पर अस्थाई रूप से हुई थी। झारखंड गठन के बाद आलोक प्रसाद होटल बिरसा बिहार रांची में प्रबंधक पद पर कार्यरत थे। झारखंड गठन के बाद सन 2005 में अपनी पहुंच और पैरवी के बल पर झारखंड पर्यटन विकास निगम में प्रभारी महाप्रबंधक बने और फिर अपनी पद प्रतिष्ठा और अनुचित कमाई के सहारे महाप्रबंधक बने। पंकज यादव का कहना है कि महाप्रबंधक का पद कार्मिक विभाग झारखंड सरकार द्वारा प्रशासनिक सेवा के लिए स्वीकृत है और इसे गैर प्रशासनिक सेवा के लोगों को इस पद पर बैठाना बोर्ड का अधिकार नहीं है। बगैर राज्यपाल की सहमति के इस पद पर किसी की नियुक्ति गैरकानूनी है। हिन्दुस्थान समाचार/ विकास

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