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हूल क्रांति जनजाति समाज का शौर्य का प्रतीक : बाबूलाल

रांची, 30 जून (हि. स.)। हूल दिवस पर प्रदेश भाजपा की ओर से पार्टी कार्यालय में बुधवार को भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की ओर से श्रद्धान्जलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने शहीद सिद्धो कान्हो को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि शहीद सिद्धो कान्हो का बलिदान अमर है। यह बलिदान जनजाति समाज की शौर्य गाथा है। अमर शहीद सिद्धो कान्हो के नेतृत्व में भोगनाडीह में 20 हज़ार संथाल आदिवासियो को लेकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का शुरुवात किया था। लेकिन इतिहास ने आदिवासी पुरखों को जितना सम्मान देना चाहिए था उतना सम्मान नहीं मिल पाया। कांग्रेस सरकार ने जनजाति आन्दोलनकारी को कभी सम्मान एवं इतिहास में स्थान देने का काम नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे जनजाति समाज के शूरवीरों को अलग-अलग तरीके से सम्मान देने का काम किया। वो लगातार कई ऐसे मंचों से जनजाति नायकों को अपने संबोधन में उनकी वीरता का जिक्र करते है। उन्होंने हेमन्त सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि जिस पूर्वजों को देश एवं समाज ने इतना सम्मान दिया उनके वंशज रामेश्वर मुर्मू का हत्या हो जाना और परिवार एवं आदिवासी समाज ने इस हत्या की सीबीआई जांच की मांग की,तो सरकार में बैठे लोगों ने उनकी बात को अनदेखा कर दिया। रूपा तिर्की हत्याकांड में भी जनजाति समाज ने सीबीआई जांच की मांग की। उसे भी हेमंत सरकार ने इनकार कर दिया। उल्टे स्व रूपा के पिता को ही अभियुक्त बना दिया। प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि 166 वर्ष पूर्व संथाल आदिवासियों पर अंग्रेज एवं अंग्रेजियत तथा उनके शासन व्यवस्था के खिलाफ और सामंतवादी सिस्टम के खिलाफ अमर शहीद सिद्धो कान्हो ने अभिव्यक्ति एवं आवाज़ बनकर उनके खिलाफ संघर्ष किया। इतिहास में जाने पर यह प्रतीत होता है कि भारत की आजादी को लेकर हुए सबसे पहले आंदोलन में बाबा तिलका मांझी के बाद झारखंड में सिद्धो कान्हो के नेतृत्व में हूल क्रांति को माना जाता है। एससटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव ने भी संबोधित किया। हिन्दुस्थान समाचार/कृष्ण

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