शिव, महेश, शंकर, पशुपतिनाथ, महादेव जैसे एक हजार एक नामो से जाने जाते है बाबा भोले नाथ।
शिव, महेश, शंकर, पशुपतिनाथ, महादेव जैसे एक हजार एक नामो से जाने जाते है बाबा भोले नाथ।

शिव, महेश, शंकर, पशुपतिनाथ, महादेव जैसे एक हजार एक नामो से जाने जाते है बाबा भोले नाथ।

देवघर, 28 जुलाई (हि.स.) कहते है जिस भक्त पर बाबा की कृपा दृष्टि पड़ती है। उसका जीवन सुखमय हो जाता है। बाबा धाम में ज्योतिर्लिंग स्थापित है। 12 ज्योतिर्लिंगों में यह सबसे महत्वपूर्ण है। क्यूंकि इस लिंग को रावण के द्वारा प्राप्त कर स्थापित किया गया था। ये मनोकामना लिंग के रूप में जाना जाता है। जिससे यहाँ मांगी गई मनोतियां जरुर पूरी होती है। यह एक मात्र शिवालय है जहाँ शिव और शाकि एक साथ विराजमान हैं। यहाँ पहले शक्ति का ह्रदय कट कर गिरा है। उसके बाद यहाँ शिव आये हैं। इसे शिव शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है । इसके पीछे भी एक रोचक कहानी छुपी है। रावन को जिद थी की वो भगवान् भोले को लंका लेकर जाए । तब क्या था रावण ने कठिन तपस्या की और भगवान् की खूब पूजा की लेकिन भगवान् भोले खुश नहीं हुए। तब रावण ने अपना सर एक-एक कर काटना शुरू कर दिया और तब बाबा भोले खुश हो गए और रावन को वर मांगने को कहा तब रावन ने उनसे लंका चलने को कहा। तब शिव जी ने कहा की मैं तो चलूँगा लेकिन जिस जगह हमें जमीन पर रख दोगे वहीं मैं स्थापित हो जाऊंगा। रावण ने ऐसे लिंग की मांग की थी की जिस लिंग के पूजन से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। इस शिवलिंग के प्राप्ति के बाद माता पार्वती ने रावण को शिवलिंग पूजन के लिए कहा और पूजन के क्रम में ही रावण ने गंगा जल पी लिया था । उसके बाद रावन शिवलिंग को लेकर लंका जाने लगा । लेकिन देवताओं ने षडयंत्र रचा और रास्ते में ही रावण को लघुसंका आया और उसने एक चरवाहा को पकड़ने को दिया। जो की बिष्णु जी का रूप में थे। लेकिन रावन का लघुशंका नहीं रुक रहा था। तब उस बिष्णु रूपी चरवाहे ने शिवलिंग को इसी जगह रख दिया। यही बाबा बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है। सबसे उत्तम लिंग ज्योतिर्लिंग को माना गया है। ज्योतिर्लिंग अथक साधना और ताप के बाद हासिल किया जाता है । रावन को भी यही मनोकामना लिंग बड़ी कठिन परिश्रम और ताप के बाद मिला । क्यूंकि उसकी जिद थी की वो इस मनोकाना लिंग के जरिये अपनी सारी मनोकामना पूर्ण कर लेगा। इसलिए इस मनोकामना लिग का बिशेष महत्व है। बैदिक कथाओं के अनुसार रावण के द्वारा शिवलिंग को लंका ले जाने के क्रम में यहाँ शिवलिंग यहाँ स्थापित हो गया । दूसरी तरफ ये चिता भूमि है। क्यूंकि यहाँ शक्ति का ह्रदय कट कर गिरा था। ऐसे में ये पहले से ही तय था की देवता शिव के शक्ति से मिलाप कराने में लगे थे । कहा जहा है सभी देवताओ ने मिलकर यहाँ बैद्यनाथ की स्थापना की थी। इस मंदिर का महत्व इसलिए भी बढ जाता क्योकि यहाँ शक्ति का हृदय कट कर गिरा था। इसलिए इसे ह्रदय पीठ भी कहा जाता है। यहाँ आने वाले भक्तों को एक साथ ह्रदय पीठ और कामना लिंग के दर्शन होते हैं। तभी तो शिव भक्त येह 105 किलोमीटर पैदल चलकर बाबा भोले नाथ को जल अर्पण करने पहुचते हैं। और अपनी सारी मनोकामना पाते हैं। यहां दीवानी दरबार है यानि यहाँ मनोकामना देर से पूरी होती है। लेकिन भक्तों की कामना जरूर पूरी होती है । कहा जाता है की कोई भी भक्त अगर सची मनोकामना के साथ बाबा भोले से मन्नत मांगते हैं तो बाबा भोले नाथ जरुर पूरी करते हैं। शिव की इस नगरी के बारे में कहा जाता है की इस नगरी में आने मात्र से भी कल्याण हो जाता है। हिन्दुस्थान समाचार /सुनील /सबा एकबाल-hindusthansamachar.in

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