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कला-संस्कृति लोगों को बेहतर से बेहतरीन बनने की दिशा देता है : राज्यपाल

रांची, 10 फरवरी (हि. स.)। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि कला-संस्कृति का बन्धन व्यक्ति को इसांन बनाता है, लोगों को बेहतर से बेहतरीन बनने की दिशा देता है। बुनियाद को मजबूती देता है। जब लोग अपने सर्वोत्तम को साझा करते हैं तभी उसका विस्तार होता है। विस्तार ही विकास है-इसी विकास को गति देना समय की मांग हैं। कला, संस्कृतिक, शिल्प युवाओं के भविष्य के साथी हैं। राज्यपाल बुधवार को रांची में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रही थी। मुर्मू ने कहा कि जहां तक देश की कला-संस्कृति की बात है, इसका गौरवमयी इतिहास रहा है। हमारे देश में विविध संस्कृतियाँ हैं। कला एवं संस्कृति हमारी पहचान है, हमारी आत्मा है। इस समृद्ध विरासत को बचा कर रखना है, ताकि सारे विष्व में भारतीय संस्कृति का परचम सदा यूँ ही लहराता रहे। इस प्रकार के आयोजन से लोगों में कला के प्रति और प्रेम-भाव बढ़ता है। उन्होंने कहा कि लोग प्रायः सुनते हैं कि हमारे कलाकारों को अन्य राष्ट्रों के द्वारा भी कला का प्रदर्शन करने के लिए बड़े ही सम्मान से आमंत्रित किया जाता है। संगीत, गायन एवं नृत्य विधाओं की दृष्टि से भारत की सांस्कृतिक विरासत अत्यंत समृद्ध रही है। संगीत एवं लोक नृत्य हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की पहचान है। यह हमारे देश की साझी संस्कृति का अनुपम उदाहरण है। राज्यपाल ने कहा कि झारखण्ड राज्य में संगीत एवं नृत्य की गौरवशाली एवं समृद्ध परंपरा सदा से है। नृत्य एवं संगीत इस राज्य की पहचान है, इसकी आत्मा में बसी है। इस राज्य के घर-घर में प्रत्येक व्यक्ति में यह रचा बसा है। उन्होंने बताया कि वह शिक्षण संस्थानों का निरंतर भ्रमण किया करती है। उन्होंने गौर से देखा है कि छोटे-छोटे बच्चों में भी कला, संस्कृति, खेल के क्षेत्र में असीम प्रतिभा निहित है। वे पढ़ाई के साथ-साथ इस क्षेत्र में भी अच्छा कर रहे हैं। अपने प्रदर्शन से सबका मन मोह लेते हैं। कला संस्कृति, खेल ज्ञान-विज्ञान एवं शोध के विभिन्न क्षेत्रों में झारखण्ड के युवाओं ने विशिष्ट पहचान बनाई है। कला-संस्कृति हमारी अनमोल धरोहर हैं, हमारी खुबसूरत विरासत हैं। मौके पर राज्यपाल ने जनजातीय कला एवं शिल्प में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम में सफलतापूर्वक पूरा करने वाले 15 विद्यार्थियों को डिग्री सर्टिफिकेट प्रदान की। इस दौरान चंद्रदेव सिंह को उनके शोध निबंध कार्य के लिए 50 अंकों में सर्वाधिक 45 अंक मिले हैं। सिंह वर्तमान में पूर्व क्षेत्र संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के कार्यक्रम समिति के झारखंड के सदस्य हैं और पिछले 20 वर्षों से झारखंड के लोक नृत्य पर कार्य कर रहे हैं। इनका शोध निबंध झारखंड के प्रमुख लोक नृत्य के ऊपर था। चंद्रदेव सिंह ने राज्यपाल को अपनी शोध निबंध झारखंड की प्रमुख लोक नृत्य भेंट की। इस शोध निबंध में चंद्रदेव सिंह ने झारखंड के सभी जिलों एवं प्रमंडलों का भ्रमण कर झारखंड के लोक नृत्य का अवलोकन किया और इस शोध निबंध मे झारखंड के लोक नृत्य का इतिहास एवं परिचय से लोगों को अवगत कराया है। झारखंड के लोक नृत्य जिसमें नागपुरी, छऊ नृत्य, पाइका, मुंडारी ,हो ,संथाली , खड़िया,खेरवार,आदी के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन किए हैं। झारखंड के पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों का भी बेहतरीन ढंग से उल्लेख किया है। शोध निबंध में लोगों को सरलता से झारखंड के सभी लोक नृत्यों को पहचानने में आसानी हो इस उद्देश्य से सभी लोक नृत्य का चित्रावली भी तैयार किया गया है। इस प्रकार यह शोध निबंध झारखंड के लोक नृत्य ,गीत संगीत एवं वादन के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा। चंद्रदेव सिंह की इस उपलब्धि के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सभी अध्यापक, सहयोगी एवं राज्य के कलाकार, संस्कृति कर्मी ,रंगकर्मी आदि ने बधाई दी है। दीक्षांत समारोह में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी, रांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रमेश कुमार पांडेय, प्रति कुलपति प्रोफेसर कामिनी कुमारी, पद्मश्री अशोक भगत, पद्मश्री मुकुंद नायक, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा सहित अन्य लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन कमल बोस ने किया। हिन्दुस्थान समाचार/कृष्ण-hindusthansamachar.in

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