सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार मनाया गया छठ पूजा का पर्व
सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार मनाया गया छठ पूजा का पर्व

सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार मनाया गया छठ पूजा का पर्व

जम्मू, 20 नवबंर (हि.स.)। छठ पूजा का पर्व भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार शुक्रवार को मनाया गया। यह कार्यक्रम पिंकू कुमार मलाकार अध्यक्ष छठ पूजा समिति जम्मू कश्मीर द्वारा आयोजित किया गया। इस अवसर पर भारतीय जनता पार्टी सुशासन एवं केंद्र शासित प्रदेश के समन्वय विभाग के प्रभारी कुंवर राजीव चाढ़क मुख्य अतिथि थे एवं थाना प्रभारी कीर्ति शर्मा विशेष अतिथि के रुप में आमंत्रित थीं। इस अवसर पर बोलते हुए कुंवर राजीव चाढ़क ने बिहार से जम्मू कश्मीर में रहने वाले सभी लोगों को सहित छठ अनुयाईयों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। उन्होंने मां छठ एवं सूर्य भगवान से सभी के स्वास्थ्य एवं कल्याण की कामना की। उन्होंने कहा कि छठ पर्व के संदर्भ में अलग-अलग धारणाएं हैं कि यह पर्व क्यों मनाया जाता है। चाढ़क ने कहा कि पुराणों से एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। उन्होंने कहा कि रामायण के अनुसार एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्याेदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। उन्होंने कहा कि महाभारत से एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। चाढ़क ने कहा कि कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। इस अवसर पर बोलते हुए समिति के प्रधान टिंकू कुमार ने कहा कि कल यानी ’21 नवंबर को यह पर्व प्रातः 4.00 बजे से 7.00 बजे तक मनाया जाएगा। समस्त जम्मू वासी पत्रकार बंधु सादर आमंत्रित हैं। इस अवसर पर विवेक पत्याल श्रीमति करुणा छेत्री, टिंकू कुमार मलाकार, अशोक कुमार मलाकार, दर्शन कुमार व अन्य उपस्थित थे। हिन्दुस्थान समाचार/अमरीक/बलवान-hindusthansamachar.in

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