मनुष्य में किसी भी चीज के कारण अभिमान आना उसके कर्म, काम, अधर्म के आधार पर होता है: संत सुभाष शास्त्री
मनुष्य में किसी भी चीज के कारण अभिमान आना उसके कर्म, काम, अधर्म के आधार पर होता है: संत सुभाष शास्त्री

मनुष्य में किसी भी चीज के कारण अभिमान आना उसके कर्म, काम, अधर्म के आधार पर होता है: संत सुभाष शास्त्री

उधमपुर, 4 दिसम्बर(हि.स.)। संत सुभाष शास़्त्री जी महाराज ने वाडेयां में अपने प्रवचनों में समझाते हुए कहा कि जिस किसी भी मनुष्य में किसी भी चीज के कारण अभिमान है, समझ लो उसके कर्म, काम अधर्म के आधार पर हैं। क्योंकि धर्म के पथ पर चलने वाले जीवित प्राणी में लचीलापन होता है और इसके विपरीत मुर्दा अकड़ा हुआ होता है। इसलिए अभिमान को त्यागना बहुत आवश्यक है। शास्त्री जी ने कहा कि लोग कहते हैं, इतिहास में भी लिखित है कि रावण और सिकंदर सरीखे आततायी जब इस धरती पर चलते थे तो धरती कांपती थी। लेकिन असल बात यह है कि धरती कांपती नहीं, अपितु हंसती थी और कहती थी कि मेरे अंश के विस्तार होकर मुझे ही अकड दिखा रहे हो। चलो थोड़ी देर और पाप क्रियाओं में व्यस्त रहो और अंत में खाली हाथ मेरी ही गोदी में आना है। शास्त्री जी ने कहा कि सिकंदर विश्व विजेता और रावण जिसने मृत्यु को सिरहाने बांधकर रखा था, वह दोनों जब मृत्यु को प्राप्त हुए तो उनको इस धरती पर याद करने वाला कोई भी नहीं था, क्योंकि दोनों अति अभिमानी थे। क्या हुआ उनके इतने अभिमान का। जिस किसी ने भी इसको त्यागा, वह संत हो गया। शास्त्री जी ने कहा कि मनुष्य के अभिमान का मुख्य कारण है इस मायावी संसार के साथ जुड़ना। आपके जीवन में संसार का कोई स्थान नहीं है ओर यदि आपके जीवन में कुछ मूल्यवान है तो वह है स्वयं का मूल्य। स्वयं की सत्ता से बढ़कर और दूसरी कोई सत्ता नहीं है। जो उसे पा लेता है वह सब कुछ पा लेता है और जो उसे खो देता है, वह सब कुछ खो देता है। अर्थात मानव जीवन मनुष्य योनी के मकसद को। स्वयं को जानने का प्रयास करें, उसे जानने के बाद आप में केवल लचीलापन ही बचेगा। हिन्दुस्थान समाचार/रमेश/बलवान -------hindusthansamachar.in

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