मनुष्य तन पाकर, विषयों में मन लगाना मुर्खता है: संत सुभाष शास्त्री
मनुष्य तन पाकर, विषयों में मन लगाना मुर्खता है: संत सुभाष शास्त्री

मनुष्य तन पाकर, विषयों में मन लगाना मुर्खता है: संत सुभाष शास्त्री

उधमपुर, 23 अक्तूबर(हि.स.)। संत सुभाष शास्त्री जी महाराज ने सलमैडी में अपने प्रवचनों में संगत से कहा कि प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है, शांति व आनंद चाहता है और यह मांग जीब की स्वभाविक है। अर्थात मानसिक सुख शांति की चाहत सब को होती है। कारण इस भगवान का ही स्वरूप है परंतु इस रस को मनुष्य भोगों से, विषयों से पूरा करना चाहता है, लेकिन चाहत तो पूरी होती नहीं और परिणाम मिलते हैं दुःख ही दुःख। यह चाहत तभी पूरी होगी, जब आपका मन यथार्थ को देखेगा, असलियत को समझेगा। संत जी ने बतलाया कि भूल यह है कि आप गंदी नाली के पानी को गंगा जल समझ लेते हैं विष को सुधा(अमृत) मान लेते हैं। अर्थात मनुष्य तन पाकर, विषयों में मन लगाना मुर्खता है। हरिः नाम रूपी, हरिः कथा रूपी अमृत को छोड़कर विषय रूपी विष का सेवन करना बुद्धिमानी नहीं है। शास़्त्री जी ने कहा कि एक तरफ पारस मणि हो या हीरा हो और दूसरी तरफ कांच का टुकडा हो, तो कोन मूर्ख है जो हीरे को छोड़ कर कांच उठाएगा। एक तरफ सोना हो, दूसरी तरफ मिठाई आदि हो, बच्चे को कहो एक चीज मिलेगी ? तो वह खाने की चीज ही उठाएगा। बहुतों का मन अभी बच्चा ही है। हर संत सदग्रंथ बार-बार सचेत करते हैं कि सांसारिक विषयों को छोड़कर प्रभु से प्रेम कर लो तो बेड़ा पार हो जाएगा परंतु मूर्ख नर मक्खी और सूअर की तरह बार-बार मल में ही सुख ढुंढता फिरता है। हे मन भगवान की शरणागत हो जा सदा सुखी हो जाएगा। हिन्दुस्थान समाचार/रमेश/बलवान-hindusthansamachar.in

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