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शहीद यादगार समिति और एक्स सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन ने वीर शहीद भगतसिंह, शहीद सुखदेव एवं शहीद राजगुरु के शहादत दिवस पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की भगत सिंह समाजिक वास्तविकता के प्रति अवगत और स्पष्ट था-शिवनंदन

कठुआ, 23 मार्च (हि.स.)। आज देशभर में वीर शहीद भगतसिंह, शहीद सुखदेव एवं शहीद राजगुरु के शहादत दिवस पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही हैं। इसी क्रम में कठुआ में शहीद यादगार समिति और एक्स सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्यों ने जिला सचिवालय के समीप शहीद भगत सिंह पार्क में बने उनके स्मारक पर वीर शहीदों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया। शहीद यादगार समिति के शिवनंदन ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के काले कानून से देश को आजादी दिलाने के लिए मातृभूमि पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर शहीद भगतसिंह, शहीद सुखदेव एवं शहीद राजगुरु के शहादत दिवस पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। उन्होंने शहीदों की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि . भगतसिंह का जन्म 27 सित्मबर 1907 में हुआ , जब विशाल हिन्दुस्तान , ब्रिटिश साम्राज्य के शासन से जकड़ा हुआ था। मुक्ति के लिए भिन्न भिन्न संगठनों के भिन्न भिन्न ढंगों की अपनी अपनी भूमिका थी। भगत सिंह का परिवार उस मुक्ति के लिए किसी ना किसी ढंग से जुड़ा हुआ मिलता है। भगत सिंह का दिमाग सोचने विचारने वाली प्रवृत्ति का मिलता था। 13 अप्रैल 1919 अमृतसर के जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ा। 12 साल के भगत सिंह ने स्कूल से ही निकल कर 12 मील चल कर जलियाँवाला बाग पहुंचा। वे एक दम किसी से प्रभावित हो कर अनुयायी नहीं था। उचित - अनुचित को आधार बना कर ही निर्णय लेने की आदत ने ही कालेज की पढ़ाई छोड़ कर नौजवान भारत सभा की स्थापना की। भगत सिंह, कार्लमार्क्स के विचारों से प्रभावित हो कर समाजिक समझ के प्रति जागरूक और स्पष्ट होता ही गया। भगत सिंह मानव समाज के भीतर अन्याय और असमानता की गहरी खाई के कारणों के प्रति स्पष्ट हो गया कि शोषण आधारित आर्थिक व्यवस्था ही मुख्य कारण है। रूस के क्रांतिकारी लेनिन से प्रेरित हो कर ही वे विशाल हिन्दुस्तान में वैसी क्रांति चाहते थे। ऐसी चेतना ब्रिटिश साम्राज्य के लिए चुनौती बन गई थी जिसके कारण छोटी आयु के फांसी देना मजबूरी बन गई थी। अँग्रेजों के मजदूरों के प्रति अत्याचार से उनका विरोध और मजदूर विरोधी ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना शहीद भगतसिंह के दल का निर्णय था। वे चाहते थे कि अँग्रेजों को पता चलना चाहिए कि हिन्दुस्तानी जाग चुके हैं और उनके हृदय में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है। इसे प्रदर्शित करने के लिए शहीद भगतसिंह, शहीद सुखदेव एवं शहीद राजगुरु ने निर्धारित योजना के अनुसार 8 अप्रैल 1921 ई. को दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में एक ऐसे स्थान पर बम फेंका जहाँ कोई मौजूद न था। बम फटने के बाद उन्होंने इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये। भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून खराबा न हो और अँग्रेजों तक उनकी आवाज भी पहुँचे। पूरा हाल धुएँ से भर गया। भगत सिंह चाहते तो भाग भी सकते थे पर उन्होंने पहले ही सोच रखा था कि उन्हें दण्ड स्वीकार है चाहें वह फाँसी ही क्यों न हो। इसके कुछ ही देर बाद पुलिस आ गयी और उन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया। करीब 2 साल जेल में सजा काटते हुए वह लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे थे। 26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 तथा धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। आम जनता की ओर से वायसराय के सामने विभिन्न तर्कों के साथ सजा माफी के लिए अपील के बावजूद भी 23 मार्च 1931 की शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई और मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर ये अमर शहीद इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम स्मृतियों में अमिट हो गए। उन्होंने ने कहा कि आज शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसा जज्बा आज के युवाओं में नहीं है, इसके पीछे है आज की राजनीति। उन्होंने कहा कि हर राजनीतिक दल आज के युवाओं का अपने नजरिए से उनका इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन अब समय आ गया है कि आज युवाओं को अपने दिमाग का इस्तेमाल करना होगा, उन्हें अपनी विचारधारा अपनी समझ के अनुसार बदलना चाहिए। उन्हें शहीद भगत सिंह सुखदेव राजगुरु जैसी विचारधारा अपनानी चाहिए। लेकिन इन युवाओं को राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही हैं जिसकी वजह से आज के युवाओं के अंदर देशभक्ति का जज्बा कम होता नजर आ रहा है। हिन्दुस्थान/समाचार/सचिन/बलवान

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