73वें विलय दिवस पर जम्मू कश्मीर एक्स सर्विसिज लीग ने शहीद बिग्रेडियर राजेंद्र सिंह को दी श्रद्धाजंलि
73वें विलय दिवस पर जम्मू कश्मीर एक्स सर्विसिज लीग ने शहीद बिग्रेडियर राजेंद्र सिंह को दी श्रद्धाजंलि

73वें विलय दिवस पर जम्मू कश्मीर एक्स सर्विसिज लीग ने शहीद बिग्रेडियर राजेंद्र सिंह को दी श्रद्धाजंलि

उधमपुर, 26 अक्तूबर (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर एक्स सर्विसज लीग के कार्यालय में जिला प्रधान दलबीर सिंह भुत्याल कि अध्यक्षता में 73वें विलय दिवस के अवसर पर अमर शहीद ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह की 73वीं पुण्यतिथि पर हर वर्ष की तरह आज भी श्रद्धांजलि दी गई। इस मौके पर दलबीर सिंह भुत्याल ने बताया कि 21/22 अक्त्तूबर 1947 जब पाकिस्तान की ओर से कश्मीर पर अचानक हमला किया गया तो जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था। महाराजा हरि सिंह जी ने ब्रिगेडियर को, जोकि जम्मू कश्मीर के सेना अध्यक्ष थे, आदेश दिया कि स्वयं उस सीमा पर जाकर पूरे हालात का जायजा लें और देश रक्षा हेतू मुनासिब कार्यवाही भी करें। बिगेडियर ने बादामी बाग छावनी में उपलब्ध लगभग 100 सैनिकों के साथ 22 अक्तूबर को दोमेल या मुजाफ्फराबाद की ओर कूच किया था तब तक पाकिस्तानी हमलावरों ने मुजफ्फराबाद पर हमला करके श्रीनगर की ओर कूच कर दिया था। 23 अक्तूबर को गढ़ी के स्थान पर आगे बढ़ रहे शत्रु से पहली झड़प में ही उन्हें अंदाजा हो गया था कि हमलावार पांच हजार से अधिक ही होंगे। इसलिए कोई ऐसा ढंग अपनाना पड़ेगा कि शत्रु का इतनी तेजी से बढ़ना भी रुक जाए और महाराजा को भारत से विलय करने का पर्याप्त समय भी मिल जाए। चुनांचे दिन में दुश्मन को लड़ाई में उलझाए रखना और रात को पीछे हटकर नई मोर्चाबंदी की नीति अपनाकर बिगेडियर ने गढ़ी के बाद 24 अक्तूबर को उड़ी, 25 अक्तूबर को महूरा तथा 26 अक्तूबर को बुन्यार, चार लड़ाइयां लड़ी। इस बीच उड़ी के पुल को उड़ा देने से दुश्मन को बहुत बड़ा आधात पहुँचाया था। जबकि ब्रिगेडियर को अपने दिन-प्रतिदिन कम होते सैनिकों का मनोबल बढ़ाकर अगली लड़ाइयों के लिए तैयार करने का कुछ समय मिल गया था। 26 अक्तूबर को यहां महाराजा हरि सिंह जी ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, तो वहीं पीछे हट कर नई मोर्चाबंदी से पूर्व ही शत्रु ने बिगेडियर को उनके बचे सैनिकांे समेत बुनयार में घात लगाकर रोक दिया। वह स्वयं ट्रक चला रहे थे कि गोलियों की बौछार से बुरी तरह घायल हो गए। चल पाना असंभव लग रहा था, उन्होंने फैसला कर लिया था कि अपने महाराजा के आदेश का पालन करते वह स्वयं दुश्मन को रोकने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे। उन्हें आखिरी बार उसी रात दो बजे के करीब देखा गया था। लेकिन उनका बलिदान, उनके युद्ध कौशल द्वारा, इतनी बड़ी दुश्मन की संख्या को केवल एक सौ के करीब सैनिकों की मदद से चार महत्वपूर्ण दिनों तक रोके रखने से ही आज हम भारत का अटूट अंग बन सके हैं। उन्होंने भारत सरकार से निवेदन करते हुए कहा कि स्वतंत्र भारत के प्रथम महावीर च्रक विजेता और वीर सेनानी जिन्हें कश्मीर रक्षक भी कहा जाता है, भारत रतन से सम्मानित किया जाए। इस मौके पर सूबेदार मेजर करनैल सिंह, सुबेदार कुलबीर कटोच, नायक सजंय कुमार, रफी वानी व पवनदेव सिंह आदि ने श्रद्वाजंलि अर्पित की। हिन्दुस्थान समाचार/रमेश/बलवान-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in