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‘अच्छे लोगों के सम्पर्क में रहने से हमारे व्यक्तित्व में सद्गणों का समावेश अपने आप होने लगता है: संत सुभाष शास्त्री‘

उधमपुर, 2 फरवरी (हि.स.)। रठियान उधमपुर में जारी श्रीमद् भागवत सप्ताह के दूसरे दिन संत सुभाष शास्त्री जी महाराज ने अपने प्रवचनों में संगत से कहा कि आप सब ने सुना है कि ‘जैसा संग, वैसा रंग‘, ‘जैसा अन्न, वैसा मन‘, ‘जैसा पानी, वैसी वाणी‘। इसी प्रकार ‘जैसा बीज होगा, वैसा ही उसका फल होगा‘। संगति का मनुष्य के जीवन पर गहरा असर पड़ता है अर्थात संग अच्छा हो या बुरा उसका प्रभाव मनुष्य पर पड़ता ही है। संत का संग सत्संगति है और असंत का संग कुसंगति। संत माने सज्जन पुरूष और असंत माने दुष्ट-दुर्जन। संत का संग कल्याणकारी, भयहारी एवं सुखदायक होता है और असंत का संग अक्लयाणकारी, भयकारी व दुखदायक होता है। शास्त्री जी ने आगे कहा कि सत्संगति मनुष्य के शुभ गुणों का निरंतर विकास करती है। जब हम अच्छे लोगों या विचारों के सम्पर्क में रहते हैं तो हमारे व्यक्तित्व में सद्गणों का समावेश अपने आप होने लगता है। संत के संग से असंत भी संत बन जाता है। सत्संगति वह पारसमणी है जो लोहे को सोना बना देती है और कुसंतगति वह खारा पानी है जो लोहे जैसी सशक्त धातु को भी गला देती है। सच्चे मित्र अपने साथ को कभी राह से भटकने नहीं देते। संत व सदग्रंथ का संग सत्संग है, परंतु वास्तव में सत्संग का अर्थ सत्य का संग है। सत्य अर्थात जो नित्य तत्व है वह सत्य है। एक साधक की पहुंच सत्य तक होनी चाहिए। जन्मे हुए और न रहने वाले को तो सब देखते हैं पर जो सदा रहने वाला है, उसे जो देखता है वह ही सही देखता है। अंत में शास्त्री जी ने अनुरोध किया कि सत्य का संग तभी होगा, जब आप अहिंसक हो जाओगे, आप ईमानदार हो जाओगे, आप न रिश्वत लोगे और न ही रिश्वत दोगे, तभी भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना कर आप सच्चे माने में सत्संगी बन जाओगे। हिन्दुस्थान समाचार/रमेश/बलवान -------hindusthansamachar.in

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