‘ऊधमपुर में कोकून खेती से जुड़े लगभग 6,000 परिवार‘
उधमपुर, 21 फरवरी (हि.स.)। जिला विकास आयुक्त उधमपुर डॉ. पीयूष सिंगला ने एक बैठक का आयोजन किया, जिसमें सैरीकल्चर विकास के अधिकारियों ने भाग लिया। बैठक में सैरीकल्चर विकास विभाग के कार्यों की प्रगति की समीक्षा की। बैठक में जिला सैरीकल्चर अधिकारी राजीव गुप्ता ने बताया कि सैरीकल्चर जम्मू कश्मीर प्रदेश का सबसे पुराना कृषि उद्योग है। यह उद्योग जम्मू प्रांत के वर्षा आधारित क्षेत्रों में पनपा है, क्योंकि शहतूत एक गहरी जड़ वाला पौधा है जिसे अच्छी तरह से लगाया जाता है और पहले साल के दौरान ठीक से देखभाल की जाती है। वहीं सीजन के दौरान जब मक्का और गेहूं जैसी अन्य सतही फीडर फसलें खराब हो जाती हैं तब भी यह पत्ते देता है। यह एक सहायक व्यवसाय है। उधमपुर जिले में 5900 से अधिक परिवार विशेषकर महिलाएं इससे जुड़ी हैं। महिलाओं को इंडोर के बजाय अपने दरवाजे पर काम मिलता है और गरिमा के साथ कमाती हैं, क्योंकि उन्हें काम के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। कोकून की मार्किटिंग कर विभाग द्वारा पूरे भारत के रेशम कोकून खरीदारों को आमंत्रित किया जाता है। वहीं डीएसओ ने बताया कि वर्ष 2020-21 में, 4930 ऊष्मायन केंद्रों पर 4681 किसानों को रेशम कीट के बीज वितरित किए गए थे और 87 ऊष्मायन केंद्रों पर 1,824 लाख किलोग्राम कोकून का उत्पादन किया गया जबकि किसानों ने इससे 409.448 लाख रुपये की राशि अर्जित की जोकि 8747 रूपए प्रति वर्ष अतिरिक्त आय के रूप में अर्जित की गई। कोकून की फसल एक छोटी अवधि की फसल है। अन्य नकदी फसलों की तुलना में किसान 20 से 30 दिनों तक काम करके पैसा कमा सकते हैं। जारी वर्ष में किसान कृष्ण लाल पुत्र राम लाल निवासी सौंथा ने 76.850 ड्राई कोकून फसल का उत्पादन किया और 74,928 रूपए अर्जित किए। वह एक प्रगतिशील रियरर है जो हर वर्ष 35 हजार रूपए से अधिक कमाता है। उसके पास अपनी जमीन पर 200 शहतूत के पौधे हैं। सैरीकल्चर विभाग उधमपुर द्वारा संबंधित उन्नत किस्मों की पौधे व सामग्री तैयार की गई है। नर्सरी में उगाए गए पौधों को लाभार्थियों के माध्यम से और विभाग द्वारा राज्य की भूमि पर खेत में प्रत्यारोपित किया जाता है। आमतौर पर किसानों द्वारा शहतूत के गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से उत्पादन के लिए शहतूत की मात्रा बढ़ाने के लिए लगभग 1 लाख मानक आकार के पौधे वितरित किए जा रहे हैं। हिन्दुस्थान समाचार/रमेश/बलवान