कुशा ग्रहणी अमावस्या पर साल भर की पूजा के लिए बनाए गए द्रभ
कुशा ग्रहणी अमावस्या पर साल भर की पूजा के लिए बनाए गए द्रभ

कुशा ग्रहणी अमावस्या पर साल भर की पूजा के लिए बनाए गए द्रभ

मंडी, 19 अगस्त (हि. स.)। आज का युग बदलती हुई मान्यताओं का युग है। विज्ञान के माध्यम से देश-विदेश की संस्कृति मे नये-नये बदलाव आने लगे हैं। ऐसे में भारतवासी भी अपनी सनातन संस्कृति और परँपराओँ को तेजी से भूल रहे हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में संस्कृति और परंपराएं और पहचान अभी भी कुछ बाकी बची है। ऐसे मे वर्ष भर के त्योहार, धार्मिक कृत्य सभी विक्रमी संवत, मास, प्रविष्टे, पूण्या-अवांस, सौर-चंद्र के विचार, आधार पर आज भी पूरी श्रद्धा और विश्वास से मनाए जाते हैं। जीवन की गति ही इतनी तीव्र है कि उत्सवों के स्थान पर इष्र्या, द्वेष और मतलब तक के लिए जान पहचान शेष बची है। परंतु दुख की बात है कि ऐसी दशा मे हम अपने धर्म, आदर्श, मान-मर्यादा, पवित्र संस्कारों, व्रत-त्योहारों को भूलकर भगवान और मां-बाप को भी भूलते जा रहे हैं। लेकिन जीवन के मार्गदर्शन की समृद्ध परंपराओं में कुशा ग्रहणी का पूण्य मुहूर्त मंगलवार को मंडी जिला के पांगणा में शास्त्रोक्त विधि से संपन्न हुआ। कुशा द्रभ का हिंदू धर्म मे विशेष स्थान है। ऐसा विश्वास है कि कुशा के बगैर देवी-देवताओं, पितरों की पूजा निश्चय ही निष्फल होती है। आज स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर ब्राह्मण परिवारों द्वारा कुशा की झाड़ी के पास पूर्वाभिमुख होकर हुँ फट मंत्रोचारण के साथ कुशा रूपी पवित्र घास को आदर सहित उचित मात्रा मे उखाड़ कर घर लाया गया। फिर कटी-फटी कुशा को छांट कर स्वस्थ हरी-भरी नोकदार कुशा से कलापूर्ण ढंग से द्रभ बनाए गए। द्रभ बनकर तैयार होने के बाद इन्हें अपने यजमानों को वितरित किया गया। कुछ द्रभ पूजा स्थल पर सुरक्षित रखे गए ताकि भविष्य मे आवश्यकता पडऩे पर इन्हें यजमानों को पूजा कार्य की सफलता हेतु प्रदान किया जा सके। कुशा ग्रहण कर द्रभ बनाने के लिए साल मे केवल यही कुशा ग्रहणी अमावस्या का दिन और मुहूर्त ही शुभ माना जाता है। हिन्दुस्थान समाचार/मुरारी/सुनील-hindusthansamachar.in

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