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हिमाचल में क्लीनिकल साईकोलाॅजिस्ट और फिजियोथैरेपिस्ट की कमी को पूरा किया जाए : मल्लिका नड्डा

शिमला, 22 जून (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में क्लीनिकल साईकोलाॅजिस्ट और फिजियोथैरेपिस्ट की कमी को पूरा किया जाना आवश्यक है ताकि दिव्यांगजनों को इनकी सेवाओं से वंचित न रहना पडे़। विशेष ओलंपिक भारत की अध्यक्ष मल्लिका नड्डा ने मंगलवार को कला संस्कृति, भाषा अकादमी के साहित्य कला संवाद के दौरान चर्चा में यह बात कही। उन्होंने बताया कि विलम्बित दिव्यांग अधिकार कानून दिसम्बर, 2016 में लागू किया गया, जिसके तहत दिव्यांगजनों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने के प्रति बल दिया गया। इसके तहत तीन प्रतिशत से बढ़ाकर इनके लिए चार प्रतिशत नौकरियों में आरक्षण की सुविधा की गई है तथा दिव्यांग पात्रता की 7 श्रेणियों से बढ़ाकर इसमें 21 श्रेणियां शामिल की गई है, जिसके प्रति जागरूकता और जानकारी होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1998 में बिलासपुर में चेतना संस्था का गठन कर मानसिक दिव्यांगता से ग्रसित व्यक्तियों के लिए कार्य शुरू किया गया था ताकि इन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इसके तहत दिव्यांगजनों को दिव्यांगता प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने के लिए सप्ताह में एक दिन शनिवार को मेडिकल बोर्ड को प्रत्येक जिले में बिठाने के प्रति निर्णय लिया गया था ताकि दिव्यांगजन को उसका दिव्यांगन प्रमाण-पत्र मिल सके, जोकि परम्परा आज तक चली आ रही है। उन्होंने चेतना संस्था द्वारा संचालित प्रशिक्षण केन्द्रों के माध्यम से व्यवसायिक प्रशिक्षण और स्वरोजगार कौशल प्रदान कर समाज के कमजोर वर्गों की सहायता व उत्थान के लिए कई कार्यक्रमों को निर्देशित किया है। विशेष ओलंपिक भारत के तहत देश के विशेष बच्चों को एक नई पहचान दिलवाने के उद्देश्य से विभिन्न खेलों का राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन किया गया। लगभग 10 हजार से अधिक विशेष एथेलिट हिमाचल प्रदेश के अध्याय से पंजीकृत है और यह खिलाड़ी नियमित तौर पर राज्य, राष्ट्रीय व विश्व स्तर के खेलों में भाग ले रहे हैं। इसके अतिरिक्त देश के अन्य दिव्यांग खिलाड़ियों को भी इससे प्रोत्साहन मिला है। मल्ल्किा नड्डा ने राजनीतिक परिवेश से संबंध होने के बावजूद सामाजिक परिवर्तन और व्यक्ति निर्माण की दिशा में कार्य करने के प्रति अपना योगदान प्रदान करने के लिए अपना प्रेरणा स्त्रोत सदा शिव देवधर जी को बताया। नई शिक्षा नीति के तहत चर्चा करते हुए बताया कि इसमें दिव्यांगजनों को 6 से 18 वर्ष तक मुफ्त शिक्षा, स्कूलों में स्पैशल एजुकेटर की नियुक्ति करने ताकि उन्हें सामान्य बच्चों के साथ पढ़ने का अवसर मिल सके तथा अन्य संगठनात्मक व मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने का निर्णय इसमें लिया गया है ताकि उनका शैक्षणिक विकास संभव हो सके। उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में विशेष ओलंपिक हिमाचल चैप्टर की शुरूआत कर इन बच्चों को खेलों की ओर प्रोत्साहित किया ताकि इनके परिवार और समाज में इनके प्रति पनपने वाली सोच को बदला जा सके और इन्हें सम्मानजनक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जा सके। उन्होंने कहा कि हमारे देश के दिव्यांग खिलाड़ियों ने विश्व शीतकालीन खेलों में श्रेष्ठ पुरस्कार प्राप्त किया है जबकि सामान्य खिलाड़ियों ने अभी तक इस स्पर्धा में कोई भी उपलब्धि अर्जित नहीं की है जोकि बहुत बड़ी उपलब्धि है। हिन्दुस्थान समाचार/उज्ज्वल/सुनील

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