Ancient sculpture of 12th century sun god found during excavation in Dehri temple of Pangana
Ancient sculpture of 12th century sun god found during excavation in Dehri temple of Pangana

पांगणा के देहरी मंदिर में खुदाई दौरान निकली 12वीं शताब्दी की सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति

मंडी, 13 जनवरी (हि. स.)। मंडी जिला की ऐतिहासिक स्थली पांगणा के साथ महिषासुर मर्दिनी माता देहरी मंदिर की खुदाई के दौरान सूर्य देव की अद्वितीय प्रस्तर प्रतिमा मिली है। कला पक्ष की दृष्टि से इस मूर्ति को 12वीं शताब्दी का माना जा रहा है। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डाक्टरा हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि भगवान सूर्य हिंदू परंपरा के पंचदेवों में माने जाते हैं। भारतीय देव पूजा पद्धति में गणेश, सूर्य, देवी, शिव, विष्णु की आराधना का विधान है। पांगणा के देहरी माता मंदिर मे इन पांचों देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदाई में निकली हैं। सूर्य का वर्णन ऋ ग्वक में मिलता है। सूर्य को वैदिक ऋ षि कश्यप और अदिति का पुत्र माना जाता है। वैवस्तु मनु, यम और यमुना उनके पुत्र और पुत्री हैं। पांगणा में खुदाई में मिली इस मूर्ति के सिर के पृष्ठ भाग में आभामंडल है जो धर्म चक्र का प्रतीक है। हिंदू धर्म की मूर्ति परंपरा में सूर्य देव की स्थानक मुद्रा में दोनों हाथों में सूर्य भगवान पुष्प लिए हुए हैं। पांचवी शताब्दी के वाराह मिहिर प्रणित ग्रंथ वाराहा संहिता में कहा गया है कि सूर्य के दो हाथ हो और सिर पर मुकुट हो इस प्रतिमा में सूर्य को उनके जूतों के साथ नहीं दर्शाया गया है। आरंभ की ईशा शताब्दियों की भारतीय सूर्य प्रतिमा कला पक्ष की दृष्टि से ईरान यूनान की प्रतिमाओं की तरह है। इन पर ईरानी यूनानी और सिथियन प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। सूर्य की प्रतिमा में उन्हें ऊँचे जूतों की व्यंजना से यूनानी और कुषाण कला प्रभाव दर्शाता है। पांगणा से प्राप्त मूर्ति में सूर्य की छोड़ी पर लंबी दाढ़ी के रूप में दर्शाना ईरानी कला प्रभाव के कारण है। सतलुज घाटी के इस क्षेत्र में सूर्य की ऐसी वैभवपूर्ण मूर्ति का मिलना पांगणा के गौरवशाली इतिहास को सुस्पष्ट करता है। डाक्टर हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि आठवीं शताब्दी के मध्य में कश्मीर पर कर्कोटक वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीठ का राज्य था। जिसने श्रीनगर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मार्तंण्ड का निर्माण किया था। ललितादित्य ने रावी और सतलुज के बीच जालंधर त्रिगर्त क्षेत्र अंतर्गत इस क्षेत्र में अधिपत्य स्थापित किया। हो सकता है कि उसी समय पांगणा में सूर्य की पूजा का प्रभाव बढ़ा हो। और यहां सूर्य की प्रतिमा की स्थापना हुई हो।ऐसी संभावना है कि सूर्य पूजा के प्रभाव के चलते पांगणा में शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया है। अत: इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के चलते पांगणा के इस शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया हो। इस मूर्ति की स्थापना का काल आठवीं-नवीं शताब्दी बैठता है। कला की दृष्टि से यह मूर्ति काओ-ममेल के मंदिरों में स्थापित प्रतिहार शैली की मूर्तियों से कम नहीं है। 12 वीं-23वीं शताब्दी में मुसलमानों के आक्रमण के कारण सूर्य पूजा में ह्रास आ गया। जिस कारण सूर्य पूजा गौण हो गई और इसका शैव और वैष्णव मत में विलय हो गया। पांगणा की सूर्य प्रतिमा के पैरों के पास सारथी अरुण करबद्ध बैठे हैं। सूर्य के अधोभाग में उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा आयुद्ध धारण कर जैसे अंधेरे का भेदन कर रही हैं। ऊपरी भाग में विद्यालय पंख फैलाए आकाश में विचरण को तैयार हैं।सूर्य पूजा पद्धति सनातन परंपरा की अभिन्न अंग है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य को समर्पित है। संभव है कि सूर्य पूजा यहां कर्कोटक वंशीय ललितादित्य ने प्रतिष्ठित की हो या कालांतर में 9वीं 10वीं शताब्दी में यह मूर्तियां स्थापित की हो। खुदाई मे मूर्ति के प्रकट होने के बाद डाक्टर जगदीश शर्मा ने भाषा एवं संस्कृति निदेशालय के सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर चुनीलाल कश्यप और हिमाचल प्रदेश के राज्य संग्रहालय के प्रभारी संग्राध्यक्ष डाक्टर हरि चौहान से संपर्क कर इस मूर्ति के दिव्य विग्रह के स्वरूप व इसके निर्माण काल की जानकारी प्राप्त कर मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी शनि शर्मा को इस मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया। डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि देहरी के इस मंदिर में एक विकसित सभ्यता का बेशकीमती पुरातात्विक खजाना दबा पड़ा है।जिसकी कदर अभी तक कोई नहीं जान पाया है। हिन्दुस्थान समाचार/मुरारी/सुनील-hindusthansamachar.in

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