वैज्ञानिकों ने फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने की नई तकनीक की दी प्रस्तुति
वैज्ञानिकों ने फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने की नई तकनीक की दी प्रस्तुति

वैज्ञानिकों ने फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने की नई तकनीक की दी प्रस्तुति

नई दिल्ली, 23 सितम्बर (हि.स.)। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के निदेशक डॉ. एके सिंह और कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने बुधवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। इस दौरान एके सिंह ने पूरे उत्तर भारत में सर्दियों के महीनों में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत कृषि अवशेषों के निस्तारण को लेकर संस्थान द्वारा विकसित की गई नई तकनीक की केजरीवाल के सामने प्रस्तुति दी। इस नई तकनीक की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘दिल्ली में ठंड के मौसम में प्रदूषण का प्रमुख स्रोत धान की पराली और फसल के अन्य अवशेष हैं। मैं संस्थान के वैज्ञानिकों को फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने के लिए कम लागत वाली प्रभावी तकनीक विकसित करने के लिए बधाई देता हूं। सरकारों को फसल के अवशेष को जलाने की समस्या का समाधान करने के लिए वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।’ बैठक में पर्यावरण एवं विकास मंत्री गोपाल राय, विकास विभाग के अधिकारी और डीडीसी भी मौजूद रहे। यह तकनीक पूसा डीकम्पोजर कही जाती है, जिसमें आसानी से उपलब्ध इनपुट के साथ मिलाया जा सकता है, फसल वाली खेतों में छिड़काव किया जाता है और 8-10 दिनों में फसल के डंठल के विघटन को सुनिश्चित करने और जलाने की आवश्यकता को रोकने के लिए खेतों में छिड़काव किया जाता है। कैप्सूल की लागत केवल 20 रुपये प्रति एकड़ है और प्रभावी रूप से प्रति एकड़ 4-5 टन कच्चे भूसे का निस्तारण किया जा सकता है। पंजाब और हरियाणा के कृषि क्षेत्रों में पिछले 4 वर्षों में एआरएआई द्वारा किए गए शोध में बहुत उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं, जिससे पराली जलाने की जरूरतों को कम करने और साथ ही उर्वरक की खपत कम करने और कृषि उत्पादन बढ़ाने के नजरिए से इसका उपयोग करने से लाभ मिला है। इसकी प्रभावी क्षमता और आसानी से इस्तेमाल की जा सकने वाली इस तकनीक से प्रभावित होकर सीएम अरविंद केजरीवाल ने 24 सितंबर को एक लाइव डेमोस्ट्रेशन के लिए पूसा परिसर का दौरा करने का फैसला किया है। उन्होंने विकास विभाग के अधिकारियों को लागत लाभ का विस्तृत विश्लेषण करने और बाहरी दिल्ली के सभी खेतों में इस तकनीक के कार्यान्वयन का पता लगाने के निर्देश भी दिए, जो फसल के अवशेष की समस्या का सामना करते हैं। हिन्दुस्थान समाचार /प्रतीक खरे-hindusthansamachar.in

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