कोरोनाकाल में बच्‍चों के लगातार घर में रहने और किसी से नहीं मिलने-जुलने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा: पद्मश्री आलोक मेहता

कोरोनाकाल में बच्‍चों के लगातार घर में रहने और किसी से नहीं मिलने-जुलने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा: पद्मश्री आलोक मेहता
कोरोनाकाल में बच्‍चों के लगातार घर में रहने और किसी से नहीं मिलने-जुलने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा: पद्मश्री आलोक मेहता

नई दिल्ली, 15 दिसम्बर (हि.स.) । कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की छठी वर्षगांठ पर इंडिया फॉर चिल्ड्रन और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) की ओर से ‘‘कोरोनाकाल, बच्चे और मीडिया’’ विषय पर मंगलवार को परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में पद्मश्री से सम्मानित पत्रकार आलोक मेहता ने कहा कि कोरोनाकाल में बच्चों के लगातार घर में रहने और किसी से नहीं मिलने-जुलने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। इससे एक ओर यदि वे काफी चिड़चिड़े हो गए हैं, वहीं दूसरी ओर उनके मन में एक बड़ा डर भी बैठ गया है। अपने मां-बाप के अलावा किसी और को देखते ही भाग जाते हैं। इस डर को निकालने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पहले बच्चों पर मीडिया में चर्चा होती थी। लेकिन अब वह नहीं होती। राजेंद्र माथुर और अज्ञेय जैसे पत्रकारों-साहित्यकारों ने इस दिशा में काफी कुछ किया है। उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष अजय सेतिया ने कहा कि वे जब उत्तराखंड में बाल आयोग के अध्यक्ष थे तब उन्होंने बाल अधिकारों के प्रति मीडिया में संवेदनशीलता बढाने के लिए संपादकों को पत्र लिखा था। उन्होंने इसके लिए कार्यशालाएं भी आयोजित कीं लेकिन उसका परिणाम अपेक्षा के अनुकूल नहीं रहा। कोरोनाकाल में जब से मजदूरों की अपने-अपने गांवों में वापसी हुई है उनके बच्चों की शिक्षा अवरुद्ध हुई है। जयदीप कार्णिक ने कहा कि कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर बाल मजदूरी को वैश्विक मुद्दा बना दिया। कोरोनाकाल में बच्चों को मीडिया ने उतना कवर नहीं किया जितना करना चाहिए था। कोरोना ने बच्चों के मनोविज्ञान पर प्रभाव डाला, जिसको मीडिया समझने में विफल रहा। प्रभाष झा ने कहा कि बच्चों से जुड़े सिर्फ 6 फीसदी मामलों को ही मीडिया में कवर किया जाता है। उसमें भी अपराध से संबंधित खबरे ज्यादा होती हैं। मीडिया में बच्चों से जुड़े मामले इसलिए भी नहीं आ पाते हैं क्योंकि वहां पर रिपोर्टर को पहले ही कह दिया जाता है कि उन्हें 3-सी यानी क्राइम, क्रिकेट और सैलिब्रेटी को तवज्जो देनी है। मीडिया में बच्चे भी प्राथमिकता से आ पाएं इसके लिए हमें न्यूजरूम में विविधता का पालन करना होगा। इस परिचर्चा में पद्मश्री आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष अजय सेतिया, अमर उजाला डिजिटल के संपादक जयदीप कार्णिक, हिंदुस्तान लाइव के संपादक प्रभाष झा और लेखक एवं फिल्म निदेशक जैगम इमाम ने भाग लिया। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बच्चों के अधिकारों के लिए किये गए कार्य के लिए कैलाश सत्यार्थी को 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हिन्दुस्थान समाचार /प्रतीक खरे-hindusthansamachar.in

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