बेगूसराय के गोदरगावां  में है शब्द संस्कृति का आधुनिक पुस्तकालय
बेगूसराय के गोदरगावां में है शब्द संस्कृति का आधुनिक पुस्तकालय

बेगूसराय के गोदरगावां में है शब्द संस्कृति का आधुनिक पुस्तकालय

बेगूसराय, 13 अगस्त (हि.स.)। जब 1930 में स्वतंत्रता संग्राम की आग से इलाका सुलग रहा था। तभी भगत सिंह को फांसी, चंद्रशेखर आजाद का बलिदान एवं बेगूसराय में आजादी के दीवाने छह युवकों की मौत से आक्रोशित, उद्वेलित और प्रेरित युवकों की टोली ने आजादी का अलख जगाने के लिए केंद्रस्वरुप गोदरगावां गांव की ठाकुरबाड़ी में महावीर पुस्तकालय की स्थापना की थी। धार्मिक एवं जातीय भेद मिट गए, ठाकुरबाड़ी भारत माता का मंदिर बन गया। इलाके के क्रांतिकारी यहींं जुटते थे और रणनीति बनती थी अंग्रेजों के साथ संघर्ष करने की। देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना बलवती हो गई तथा स्तरीय पुस्तकें पत्र-पत्रिकाएं जमा होने लगींं। बदलते समय के साथ यह बिहार ही नहीं, यह देश के चर्चित पुस्तकालयों में शुमार हो गया। आज भी यह आजादी के दीवानों की याद दिलाता है। कई बार यहां आ चुके कमलेश्वर के शब्दों में 'यहां आता हूं तो लगता है घर-परिवार आया हूं। यहां आते ही बलिदानी भगत सिंह मिल जाते हैं, राहुल जी, दिनकर जी, नागार्जुन, यशपाल, निराला जी, प्रेमचंद, रेणू आदि से एक साथ मुलाकात हो जाती है। प्राचीन नालंदा अब नहीं रहा पर हमारे पास शब्द संस्कृति का आधुनिक गोदरगावां तो है।' बेगूसराय जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर मटिहानी प्रखंड में गोदरगावां गांव के प्रवेश द्वार पर विशालकाय चन्द्रशेखर आजाद, पुस्तकालय परिसर में भगत सिंह, प्रेमचंद, मीराबाई, कबीर, महात्मा गांधी एवं डॉ. पी गुप्ता की प्रतिमा इतिहास और संस्कृति का बोध कराती हैंं। 1942 के आंदोलन में आस-पास के गांव के लोगों ने भी में भाग लिया तथा लाखो स्टेशन पर रेल की पटरी उखाड़ी, स्टेशन जला दिया था जिसमें अंग्रेजों ने सामूहिक जुर्माना वसूला था। 1946 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में गठित अंतरिम सरकार ने अंग्रेजों द्वारा वसूली गई जुर्माने की राशि आठ सौ रुपया वापस करवा दी तो लोगों ने स्मारक स्वरूप पुस्तकालय भवन निर्माण का निर्णय लिया। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली और उसी दिन से स्थानीय सत्यनारायण शर्मा द्वारा दान की गई जमीन पर पुस्तकालय भवन का निर्माण शुरू कर दिया गया जो आज भी पुस्तकालय के रूप में अंधकार में जीवन का अलौकिक प्रकाश बिखेर रहा है। वार्षिक समारोह में तत्कालीन राज्यपाल डॉ. ए आर किदवई, नामवर सिंह, कमलेश्वर, प्रभाष जोशी, कुलदीप नैयर, हबीब तनवर, डॉ. रामजी सिंह, रेखा अवस्थी, अंजुमन आरा, शंकर दयाल सिंह, हरिवंश, शशि शेखर, एबी वर्धन, केदारनाथ सिंह, ललित सुरजन जैसे सैकड़ों साहित्यकार, कवि, पत्रकार, जनप्रतिनिधि, अधिकारी यहां आकर संस्कृत-शिक्षा-संस्कृति एवं संस्कार को परिभाषित कर चुके हैं। पुस्काध्यक्ष मनोरंजन विप्लवी बताते हैं कि आधुनिक हॉल, प्रोजेक्टर से युक्त इस पुस्तकालय के बाइस सौ सदस्य हैं तथा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू की 32 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को भगत सिंह के बलिदान दिवस पर यहां दो दिवसीय साहित्य का मेला लगता है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों की भीड़ जुटती है। उत्कृष्ट एवं जन सहयोग से खड़ी की गई यह सांस्कृतिक इमारत, बिहार ही नहीं देश के लिए उदाहरण है। इस पुस्तकालय में साहित्य-संस्कृति-इतिहास एवं समाज का अद्भुत समावेश देखा जा सकता है। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/विभाकर-hindusthansamachar.in

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