नहीं लगा एशिया का सबसे बड़ा कल्पवास मेला, वीरान पड़ा है सिमरिया

नहीं लगा एशिया का सबसे बड़ा कल्पवास मेला, वीरान पड़ा है सिमरिया
नहीं लगा एशिया का सबसे बड़ा कल्पवास मेला, वीरान पड़ा है सिमरिया

बेगूसराय, 29 अक्टूबर (हि.स.)। वैश्विक महामारी कोरोना ने ना केवल आम जनमानस के तमाम क्रियाकलापों को प्रभावित कर दिया है। बल्कि इसने संस्कृति, धर्म और अध्यात्म पर भी जोरदार प्रहार किया है। रामनवमी, मुहर्रम और दुर्गा पूजा के बाद अब कोरोना ने एशिया के सबसे बड़े कल्पवास मेला को भी अपने लपेटे में ले लिया है। कोरोना के कारण इस वर्ष सिमरिया गंगा धाम में कल्पवास मेला नहीं लगा है और सदियों से चली आ रही सनातन संस्कृति की यह परंपरा पर रुक गयी है जिसके कारण एक महीना तक गंगा किनारे रहकर आध्यात्मिक क्रिया-कलापों में लीन रहने वाले श्रद्धालुओं में भारी निराशा छाई हुई है। कभी अंगुत्तराप और स्वर्ण भूमि के नाम से विख्यात बेगूसराय के सिमरिया में पावन गंगा नदी के तट पर लगने वाले एशिया के सबसे बड़े कल्पवास मेला स्थल पर सन्नाटा पसरा हुआ है। मिथिला एवं मगध के संगम स्थली गंगा धाम सिमरिया में सदियों से कार्तिक मास में कल्पवास करने की परंपरा रही है। यहांं सिर्फ मिथिलांचल केे ही नहीं, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और नेपाल के हजारों हजार लोग पर्ण कुटीर बनाकर कल्पवास करते थे। इसके साथ ही 50 से अधिक खालसा भी लगाया जाता था। सुबह में गंगा आरती और सूर्य नमस्कार से शुरू होने वाले कल्पवासियों की दिनचर्या रात्रि में गंगा आरती के साथ समाप्त पर होती थी। दिन भर सात्विक और अरवा-अरवाइन भोजन करने वाले 30 दिन से अधिक समय तक गंगा स्नान के साथ-साथ रामायण, गीता आदि का पाठ करते रहते थे। लेकिन इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के कारण राजकीय कल्पवास मेला नहीं लग पाया है। साधु-संतों ने कल्पवास के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन प्रशासनिक स्वीकृति नहीं मिली जिसके कारण दूरदराज से आने वाले लोग निराश होकर लौट रहे हैं। साधु-संतों का कहना था कि भारतीय सनातन संस्कृति और अस्मिता पर प्रहार नहीं होना चाहिए था। लेकिन हालत के मद्देनजर स्वीकृति नहीं मिली। हालांकि परंपरा के अनुसार सिद्धाश्रम समेत विभिन्न मठ-मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कार्तिक महात्म्य कथा एवं गंगा पूजन का आयोजन किया जाएगा। मेला क्षेत्र के परिक्रमा की भी औपचारिकता पूरी की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि सिमरिया गंगा तट पर आदिकाल से कल्पवास की परंपरा रही है। हिन्दू धर्म शास्त्र में उत्तरवाहिनी गंगा का काफी महत्व है तथा सिमरिया में गंगा उत्तरवाहिनी है। राजा परीक्षित ने भी श्राप से उद्धार के लिए सिमरिया गंगा तट पर किया था कल्पवास कहा जाता है कि राजा परीक्षित ने भी श्राप से उद्धार के लिए सिमरिया गंगा तट पर कल्पवास किया था। जनक नंदिनी सीता जब विवाह के बाद अपने ससुराल अयोध्या जा रही थीं तो उनके पांव पखारने के लिए राजा जनक ने मिथिला की सीमा सिमरिया में ही डोली रखवाया था। तब राजा जनक ने सिमरिया पहुंचकर गंगा के किनारे यज्ञ और कार्तिक मास में कल्पवास किया और तभी से यहां कल्पवास की परंपरा चल रही है। लेकिन कोरोना ने तमाम इतिहास और संस्कृति को तोड़कर रख दिया है। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/रामानुज-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in