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वर्चुअल संवाद "प्रेम पर बंदिशों के मायने" का आयोजन

भागलपुर, 14 फरवरी (हि.स.)। पीस सेंटर परिधि की ओर से रविवार को वर्चुअल संवाद "प्रेम पर बंदिशों के मायने" का आयोजन किया गया। संवाद का संचालन करते हुए पीस सेंटर परिधि के संयोजक राहुल ने कहा कि प्रेम कोई नूतन अवधारणा नहीं है यह प्रकृति जन्य है और यह मनुष्य के विकास में बड़ा योगदान रखता है। भारतीय संस्कृति में प्रेम को हमेशा से विशेष दर्जा प्राप्त रहा है। वैदिक काल से अब तक प्रेम संबंधों पर आधारित कई गाथाएं इस भूभाग में प्रचलित है। तब भी कुछ लोग प्रेम को गलत समझते और उस पर रोक की बात करते हैं। संस्कृति कर्मी उदय ने अपनी बात रखते हुए कहा कि प्रेम का उल्टा घृणा होता है। समाज में प्रेम स्वीकार नहीं करें तो क्या नफरत, घृणा स्वीकार करेंगे। मानव अधिकार की दृष्टि से हर व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति का अधिकार है। वह अपने अनुसार अपना जीवनसाथी चुन सकता है। प्रेम में जाति बिरादरी का बंधन तोड़ने की ताकत है। यह बंदिश प्रकृति ने नहीं बनाई है, समाज ने बनाई है। लड़की हर चीज में छोटी हो ऐसी सामाजिक व्यवस्था प्रेम से ही टूटेगी। प्रेम के बिना समतामूलक, न्याय वादी, लोकतांत्रिक समाज नहीं बन सकता। इस अवसर पर कवित्री पिंकी मिश्रा ने अपनी कविता "मोहब्बत पर पहरे लगाने वाले, खुदा करे तुम्हें भी मोहब्बत हो जाए" से आधुनिक संदर्भ पर हमला किया। वरिष्ठ शिक्षिका छाया पांडे ने कहा कि पूरी सृष्टि को चलाने के लिए प्रेम है। हमें प्रेम पर बंदिश नहीं बल्कि परिपक्व प्रेम के लिए अवसर देना चाहिए। शिक्षिका रजनी कुमारी ने अपनी कविता "प्रेम एहसास है, प्रेम कपड़े बदलने जैसा नहीं, ए दुनिया वालों तुम क्या जानो प्रेम क्या होता है " रखी। कवयित्री पूनम पांडेय ने अपनी कविता "फरवरी का प्रेम" के माध्यम से आधुनिक संदर्भ को रेखांकित करते हुए प्रेम को गंभीरता से लेने की बात कही। आरजू नवोदित कबूल कवित्री आरजू ने अपनी कविता में प्रेम को इस तरह रखा "तुझ में मैं और मुझ में तुम, जब मिल जाए, हम हम न रहें तुम तुम न रहो," द्वारा प्रेम में बराबरी की बात की। धन्यवाद देते हुए सुषमा ने कहा कि आज जो लोग प्रेम पर बंदिशे लगा रहे हैं, वही बाहर निकल कर महिलाओं और लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं। महिलाओं को स्वेच्छा से जीवन साथी नहीं चुनने देना समाज को रूढ़िवादी बनाने के लिए होता है। हिन्दुस्थान समाचार/बिजय/चंदा-hindusthansamachar.in

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