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सद्भाव के गीत विषयक तीन दिवसीय वर्चुअल कार्यशाला संपन्न

भागलपुर, 12 जून (हि.स.)। पीस सेंटर परिधि द्वारा आयोजित तीन दिवसीय "सद्भाव के गीत" वर्चुअल कार्यशाला का शनिवार को समापन हो गया। कार्यशाला के मुख्य प्रशिक्षक वरिष्ठ रंगकर्मी संगीता और ललन थे। कार्यशाला में मुंगेर, रंगरा, गोराडीह, सबौर, जगदीशपुर सहित शहरी क्षेत्र के 37 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला के उद्देश्य के बारे में अपनी बात रखते हुए पीस सेंटर परिधि के संयोजक राहुल ने कहा कि आज आम लोगों के सुख-दुख पर केंद्रित गीतों की कमी हो गई है। रेडियो की भी पहुंच लगभग समाप्त हो जाने से लोकगीत और मनुष्य के जीवन, सुख दुख से जुड़े भावों पर केंद्रित गीत बहुत कम हो गए हैं। बच्चों को फिल्मी गानों के अलावे कोई दूसरे गीत सुनने को नहीं मिल रहे हैं। एक वक्त था जब शिक्षा जागरूकता, पर्यावरण आदि मुद्दों पर आंदोलन हुआ करते थे। तब इन अभियानों से जुड़े गीत चलन में होता था। पर आज ऐसे अभियान भी रुक से गए हैं। ऐसी परिस्थिति में पीस सेंटर परिधि ने लोगों के जीवन, आपसी प्रेम, सद्भाव पर केंद्रित गीतों का यह कार्यशाला आयोजित किया है। सार्थक भरत ने कहा कि गीत एक ऐसा माध्यम है जो किसी भी भाव को प्रभावी ढंग से ब्यक्त कर सकता है। यह बात सच है कि आज के दौर में गीत अपना महत्व खो रहे हैं लेकिन यह बात भी सही है की आज के डिजिटल युग में आंदोलनों या लोकतंत्र के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाइयां भी कमजोर हो गई है। इसे जारी रखा जाना चाहिए। गीत सिखाते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी संगीता ने बताया कि जब तक हम समाज से लिंग भेद और गैर बराबरी नहीं समाप्त करेंगे तब तक हम बेहतर समाज की रचना नहीं कर सकते। इस अवसर पर संत तुकडोजी महाराज द्वारा रचित भजन -"हर देश में तू हर वेश में तू" सिखाते हुए रंगकर्मी ललन ने कहा कि लोग ईश्वर को मंदिर मस्जिद गिरजाघर में ढूंढते हैं। जबकि ईश्वर तो हर जगह है और प्रकृति में व्याप्त है। हम सभी प्रकृति का हिस्सा हैं। इसलिए हम सभी एक हैं, हमारा ईश्वर एक है। वाल्मीकि महतो द्वारा रचित सद्भाव गीत- "कितने मंदिर और बनेंगे, कितने मस्जिद और बनेंगे" ने प्रतिभागियों को धर्म के नाम पर सत्ता की राजनीति और हिंसा की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया। कार्यशाला में सामाजिक मुद्दों, धार्मिक सामाजिक सद्भाव और पर्यावरण को बचाने के संकल्प वाले कई गीतों को सिखाया गया। हिन्दुस्थान समाचार/बिजय/चंदा

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