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महिलाओं की सामाजिक प्रतिष्ठा सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी पुरुषों पर

गया, 11 मार्च (हि.स.)। दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) में मनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह के अंतर्गत विभिन्न विभागों द्वारा संगोष्ठियां एवं अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। जन संपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मो. मुदस्सीर आलम ने गुरुवार को बताया कि इसी क्रम में विवि के हिंदी विभाग द्वारा आज ''देहरी के पार स्त्री-आवाज" विषय पर परिचर्चा आयोजित की गयी। अध्यक्षीय वक्तव्य में भाषा केंद्र एवं साहित्य पीठ के अधिष्ठाता एवं हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुरेश चन्द्र ने संवैधानिक अधिकार की चर्चा करते हुए महिलाओं के विकास की बात की। सिंधु घाटी की सभ्यता में मातृदेवी की बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में महिलाओं का प्रमुख स्थान रहा है और वे समाज की महत्त्वपूर्ण घटक हैं। उन्होंने वंचित महिलाओं के लिए विधिक सहायता की बात की। व्यवस्था और जवाबदेही पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय पर बात होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यहां सामूहिक अपमान की परम्परा चल रही है। ‘‘चोरी-चमारी’’ शब्द युग्म के प्रयोग में सन्निहित जाति विशेष की स्त्रियों के अपमान की परंपरा समाप्त होनी चाहिए । उन्होंने इसकी समाप्ति के लिए दंड विधान की आवश्यकता की बात कही। इज्जत का सवाल स्त्रियों से नहीं पुरुषों से पूछना चाहिए। उन्होंने मैत्रेयी पुष्पा की किताब 'फाइटर की डायरी' के माध्यम से संघर्षशील महिलाओं को याद किया। विशिष्ट वक्ता के रूप में शिक्षा विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ.कविता सिंह ने ऐतिहासिक प्रक्रियाओं के माध्यम से बताया कि विचारधारा, अनुशासन और दंड विधान के द्वारा स्त्रियों के अधिकार और स्वतंत्रता को सीमित किया जाता है। बाल-विवाह, पर्दा प्रथा आदि पुरुषवादी समाज द्वारा बनाये गए नियम हैं। उन्होंने स्त्रीवादी नजरिये से व्यवस्था में परिवर्तन लाने पर जोर दिया। आमंत्रित वक्ताओं में हिन्दी-विभाग की छात्रा मेघा सिन्हा ने कहा कि समाज मे आए-दिन प्रायः स्त्रियों को अमानवीय, अशोभनीय, आचरण व्यवहारों का सामना करना पड़ता है । ऐसी घटनाओं का संज्ञान लेते हुए स्त्री को उचित न्याय मिले, न्याय व्यवस्था में अपेक्षित सुधार पर बल दिया । हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/चंदा

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