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नदी, पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के संकल्प के साथ गेरुआ नदी यात्रा संपन्न

भागलपुर, 27 मार्च (हि.स.)। परिधि द्वारा आयोजित गेरुआ नदी यात्रा का समापन शनिवार को त्रिमुहान में हो गया त्रिमुहान मतलब गेरुआ, भैना और गंगा नदी का मिलन स्थल। गेरुआ नदी यहीं आकर गंगा बनती है। यात्रा में शामिल युवाओं ने संगम स्थल पर गेरुआ, गंगा, नदी, पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण बचाने का संकल्प भी लिया। संकल्प परिधि के निदेशक उदय ने दिलाया। उल्लेखनीय हो कि इस यात्रा की शुरुआत विश्व जल दिवस पर की गई थी। परिधि यात्री दल ने गेरुआ के दोनों किनारों पर बसे और प्रभावित दो दर्जन गांव यथा खड़हरा, श्रीमतपुर, बेलसर, गठौर, महियामा, रसलपुर, गरभु डीह, डोभी, नगदाह, विश्वासपुर और पोठिया में गेरुआ संवाद का आयोजन किया, पर्चे बांटे और तथ्य संग्रहण किया। यात्री दल में चल रहे अभिजीत, नीरज, दीप प्रिया, लाडली राज, जय नारायण, अभिषेक, मनोज, भरत, राहुल आदि ने कहा कि गेरुआ नदी की जानकारी हमें भी बहुत नहीं थी। जिसे सीखने का मौका मिला। गेरुआ नदी के मरने के साथ ही "चुहांड़ी" संस्कृति मर गई। यह कितनी अच्छी बात थी कि गांव पानी के लिये आत्मनिर्भर था। सभी गांवों में पीने के पानी के लिये चुहांड़ी का उपयोग होता था। चुहांड़ी मतलब नदी के अंदर बालू हटाकर खोदा गया मिनी कुंआ। "कुंड" भी गेरुआ नदी के अंदर प्रकृति निर्मित एक विशेष जल स्रोत था। गेरुआ में नदी में 15 -20 फीट गहरा जलाशय बन जाता था। इसी जल स्रोत को कुंड कहते थे। कुंड के समाप्त होने से भैंस पालना भी खत्म हो गया। कुंड में तरह तरह की मछलियां भारी मात्रा में मिलती थी। जिसे गांव के लोग मुफ्त में अघा कर खाते थे। गेरुआ किनारे बसे ग्रामीणों ने सबसे बड़ी चिंता बालू उठाकर नदी को मारने की साजिश पर व्यक्त की। ग्रामीणों ने कहा अगर बालू उठाव और मिट्टी उठाव पर रोक लग जाये, जगह जगह चेक डैम (छिटका) बन जाय तो गेरुआ पुनर्जीवित हो उठेगा। परिधि के निदेशक उदय ने कहा कि एकत्रित तथ्य को हम विशेषज्ञों से साझा करेंगे जिन लोगों ने मरती नदी को पुनर्जीवित किया है। उनके साथ मिलकर गेरुआ को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाया जाएगा। मौके पर जयकरण सत्यार्थी, पंचायत समिति सदस्य प्रकाश कुमार राजू रंजना, उमाशंकर आदि ने भी अपनी बातें रखी। हिन्दुस्थान समाचार/बिजय

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