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जहरमुक्त भोजन के लिए पीएम के ऑर्गेनिक खेती की अपील का दिखने लगा है असर

बेगूसराय, 01 फरवरी (हि.स.)। विभिन्न गंभीर बीमारियों का कारण बनते जहर युक्त भोजन से लोगों को दूर रखने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रयास रंग लाने लगा है। प्रधानमंत्री के आह्वान पर इस सीजन में बेगूसराय में एक सौ एकड़ से अधिक में ऑर्गेनिक (जैविक) खेती किया जा रहा है। बड़ी संख्या में किसानों ने जैविक तरीके से सब्जी आदि लगाया है। 1960 के दशक में बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए अधिक अन्न उपजाने के उद्देश्य से तत्कालीन सरकार ने विदेशों से रासायनिक खाद का आयात कर किसानों को इसके लिए प्रेरित किया था। लेकिन अब वही खाद जानलेवा साबित हो जा रहा है। जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नो केमिकल यानी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं। जिस प्रयास का असर गांव-गांव तक पहुंच गया है। बखरी के किसान कृष्णदेव राय ने सोमवार को बताया कि रासायनिक खाद के प्रयोग से अधिक उपज होने के कारण पेट तो भर गया। लेकिन रासायनिक खाद का असर उत्पाद के माध्यम से शरीर में जाने से विभिन्न प्रकार की बीमारी बढ़ गई, अधिकतर लोग गैस्ट्रिक, डायबिटीज और कैंसर की चपेट में आ गए। रोगों की बढ़ती संख्या के बाद जब रिसर्च किया गया तो पता चला कि अधिकतर बीमारियों का कारण रसायनिक खाद युक्त भोजन है। अब सरकार लोगों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रही है। हम लोगों ने भी जैविक खेती का अभियान किसानों तक पहुंचाना शुरू कर दिया है। सभी किसान अपने जमीन की मिट्टी का टेस्ट कराएं, उसमें उर्वरक की मात्रा और जमीन के शुद्ध होने के समय का पता लगाएं। जैविक तरीके से खेती करें-क्योंकि अगला भविष्य जैविक खेती का है। सरकार चाहती है कि 60-70 वर्ष पहले की तरह खेती हो, धीरे-धीरे लोग रासायनिक खाद से दूर हों, प्रोडक्शन कम हो लेकिन शुद्ध हो तो रेट ऊंचा कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि 60 साल पहले खेत में रासायनिक खाद-दवा का प्रयोग नहीं होता था। जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई तो बढ़ती हुई जनसंख्या का पेट भरने के लिए सरकार उर्वरक के प्रयोग को बढ़ावा देने लगी। पहले मानसून आधारित खेती होती थी, आषाढ़ आते-आते किसानों के घर खाली हो जाते थे तो भुखमरी की हालत हो जाती थी। सिंचाई के अभाव के अभाव में रबी फसल की खेती कम होती थी। भूख से मौत का सरकार पर बोझ बढ़ने लगा तो सरकार ने विदेश से खाद मंगवाया। पैदावार बढ़ा तो हरित क्रांति की शुरुआत हुई, पौधा को तुरंत भोजन मिलने से वृद्धि तेज हो गई। विदेश से मंगाए गए खाद हजारों वर्षों से जमीन में दबे उर्वरा शक्ति को तुरंत पौधे को पहुंचाने लगे। जिससे फसल अच्छी हुई, लेकिन 15-20 साल बाद ही जमीन की उर्वरा शक्ति कम होने लगी। अब बगैर खाद के कोई फसल नहीं होता है। इस स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभियान चलाया है कि खेतों में खाद नहीं दीजिए, दलहन की खेती कीजिए। दलहन और ढ़ैंचा वायुमंडल से नाइट्रोजन खींचकर जमीन को देते हैं। ढ़ैंचा के रूट में नुडस बनता है, इससे जमीन में नाइट्रोजन फिक्स होती है। वायुमंडल से जब जमीन में नाइट्रोजन फिक्स होगा तो जमीन की उर्वरा शक्ति पुनः कायम होगी और बगैर खाद के भी फसल हो सकेगा। सभी लोगों को प्रधानमंत्री के इस अभियान को आत्मसात करते हुए जहर मुक्त भोजन के लिए नो केमिकल खेती-ऑर्गेनिक खेती-जैविक खेती-प्राकृतिक खेती करनी चाहिए। तभी हम और हमारा समाज स्वस्थ तरीके से लंबा जीवन जी सकेगा। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र-hindusthansamachar.in

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