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गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव के माध्यम से हुआ परिष्कार सत्र का आयोजन

सहरसा,27 जून (हि.स.)। गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव प्रसारण के माध्यम से रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन किया गया। सत्र को संबोधित करते हुए डाॅ अरूण कुमार जायसवाल ने कहा कि समस्त समस्याओं,विसंगतियों,पीड़ाओं और कराह का एक हीं समाधान है वह है ईश्वर शरणागत। आवश्यकता है हम कितना समर्पित भाव रखते हैं।इसलिए अंतर्मन से प्रार्थना करें,ध्यान करें। प्रार्थना और ध्यान हमारे अंदर के जीवनी शक्ति को बढ़ाता है।उन्होंने ज्ञान की कक्षा में एक बंगला साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की व्यक्तित्व पर आधारित एक पुस्तक "आवारा मसीहा" लेखक विष्णु प्रभाकर के संबंध में कहा शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय एक विलक्षण चरित्र केआदमी थे।वे कलकत्ता के सोनागाछी वेश्या के मोहल्ला में कोठा पर रहकर अपनी साहित्यिक रचना करते थे।वे चरित्रहीन नहीं थे।साफ-सुथरा इन्सान थे। उनका अधिकांश समय कोठे पर बीतता था।उनका सारा कागज-पेपर वहीं रहता था।वेश्याएं उन्हें अपना आदर्श मानती थी और शरतचंद्र उससे राखी बंधवाते थे।वेश्याएं कहती-लोग आपको अच्छी निगाह से नहीं देखते।आप अच्छे जगह पर जाकर रहिए न।इसपर शरतचंद्र जी कहा करते थे लोग हमें गलत समझते हैं वह हमें अच्छा लगता है।ये दुनियां उल्टी है रे।इसमें सम्मान पाना अपमान पाने से ज्यादे बदतर है। वे कहते थे-कभी फूल को देखा है। दुनियां उसको तोड़ती है,डाल से निकालती है,सूंघती है मसलती है और पैरों के नीचे फेंककर कुचलकर निकल जाती है।यह होती है फूल की खुशबू, सुगंध, और रंगत का फल। उन्होंने कहा दुनियां फूलों को बड़ा सम्मान देती है।जो माला बनाई जाती है,बनाने से पहले फूल की गट्टे में सूई डाली जाती है।फूल का पूरा अस्तित्व सूई से बनता है।यानी हर फूल को सूली पर चढ़ना पड़ता है। वे कहते थे।इस दुनियां में जितना कम सम्मान मिले,जितना कम लोग जाने और अपने अन्तर में प्रकाशित रहे उतना ही अच्छा होता है। उन्होंने कहा शरतचंद्र चट्टोपाध्याय कहते थे।कुछ अपनों के साथ रहने में जो सुख है वह गैरों से सम्मानित होने में नहीं है।इसी लक्षणॊं के कारण वे तवायफ के यहाँ पड़े रहते थे।कोठे पर रहना,घूमना, मस्त रहकर दारू पीना,मगन रहना।इसलिए लगता है कि विष्णु प्रभाकर ने उन्हें "आवारा मसीहा कहा"। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय बंकिमचंद चट्टोपाध्याय की तरह बंगाल के उच्चकोटि के साहित्यकार थे।उनकी एक रचना "पाथेर पांचाली" पर सत्यजीत रे ने फिल्म भी बनाए।उन्होंने कहा उनकी अच्छी अच्छी रचनाएँ है,अगर हम उसकी रचनाएँ पढ़ें तो जीवन को सही सही समझ पायेंगे। उक्त कार्यक्रम की जानकारी गायत्री शक्तिपीठ के सदस्य श्यामानंद लाल दास ने दी। हिन्दुस्थान समाचार/अजय

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