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विश्व आस्था, शांति और सद्भाव का प्रतीक बनेगा श्रीराम मंदिर : बजरंग दल

बेगूसराय, 21 जनवरी (हि.स.)। श्रीरामजन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण केवल मन्दिर का विषय नहीं है, यह भविष्य में हिन्दू समाज के पुनर्जागरण एवं पूर्ण विजय की अजय गाथा बनेगी। 492 वर्षों के 77 संघर्ष के साढ़े चार लाख बलिदान का फल आज विश्व भर के हिन्दूओं को मिल रहा है। 1984 में पूज्य संतों के आदेश पर विश्व हिंदू परिषद ने इस आंदोलन को हाथ में लिया। यह बातें बजरंग दल के प्रांतीय सह संयोजक शुभम भारद्वाज ने गुरुवार को कही है। उन्होंने कहा कि 1984 में ही श्रीरामजन्मभूमि यात्रा की सुरक्षा के निमित विश्व हिंदू परिषद के युवा इकाई बजरंगदल की स्थापना हुई। हमनेेे कसम श्रीराम की खाई थी कि मंदिर वहीं बनाएंगे, लंबे संघर्ष के बाद हम सनातन धर्मावलंबियों का वह सपना सच हो रहा है। आज गर्व एवं सौभाग्य का विषय है कि हम युवा पीढ़ी को मन्दिर निर्माण में गिलहरी की भूमिका निभाने का सुअवसर मिल रहा है। आज अयोध्या में भगवान का भव्य मंदिर बनना हम युवाओं को शतत रामकार्य पर चलने के काम को और बल दे रहा है। भारतीय संस्कृति कालजयी और महामृत्युंजय संस्कृति है। इस संस्कृति के उच्चतम प्रतिमान भगवान श्री राम हैं, जो राष्ट्र के मंगल है। मंदिर निर्माण से समूचे विश्व में ना केवल शांति एवं सद्भाव का मार्ग प्रशस्त होगा। बल्कि यह आदर्श, चरित्र, व्यवहार, आपसी सौहार्द, शांति, अहिंसा और साम्प्रदायिक सौहार्द का भी संदेश देगा। उन्होंने कहा कि घर-घर से दान नहीं, समर्पण स्वीकार कर पुण्य का भागी बनना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जनमानस की व्यापक आस्थाओं के कण-कण में विद्यमान हैं। मानवता के प्रेरक श्रीराम के चरित्र की सुगन्ध विश्व के हर हिस्से को प्रभावित करती है। भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर और प्रशांत हो। इस विराट चरित्र को गढ़ने में भारत की सहस्त्रों प्रतिभाओं ने कई शताब्दियों तक अपनी मेधा का योगदान दिया। जाति के भेद-भाव को मिटाकर ब्राह्मण हो या पासवान-हिन्दू हिन्दू एक समान का नारा देते हुए हमसब हर हिन्दू को गले लगा रहे हैं। हम अपने यशश्वी पूर्वजों को भी कभी भूल नहीं सकेंगे, जिन्होंने जन्मभूमि के लिए संघर्ष किया। 1528 के बाद महारानी अहिल्याबाई होलकर ने भी हिन्दूओं को भूमि लौटाने के लिए संघर्ष किया था और अल्प समय तक भूमि हिन्दूओं के पास आ गयी थी। बाद के दिनों में अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया, आचार्य गिरिराज किशोर एवं पूज्य महंत अवैधनाथ जी ने जो संघर्ष किया, उसे सनातन धर्म कभी भूल नहीं सकता है। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा-hindusthansamachar.in

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