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कोरोना काल मे अल्पसंख्यक युवकों ने साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की

सहरसा,28 अप्रैल(हि.स.)। कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रसार को देखते जहां हर अपने पराए साबित होने लगे। ऐसे समय में अगर कोई धर्म की दीवार को भी तोड़कर मानवता की मिसाल कायम करता है तो वैसे लोग नि:संदेह ही नमन के पात्र हैं। मीर टोला से उत्साही मुस्लिम समुदाय के युवकों ने एक ऐसा ही प्रेरणादायी और मानवता की मिसाल कायम करने का काम किया है। खुर्शीद आलम ,ताबीस मेहर , तबरेज़ तसनीम , वसीम अंसारी को आदित वत्स ने जब बताया कि उसके पिताजी शंकर झा की कोविड से मौत हो गई और दाह संस्कार के लिए परिवार के कोई लोग सहयोग के लिए नहीं आ रहे हैं तो उसने तुरंत पहुंचने का भरोसा दिलाया। खुर्शीद अंसारी,ताबीस मेहर , तवरेज आलम व वसीम अकरम के साथ क्लिनिक पहुंचे। हालांकि इन युवाओं को हिन्दू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार का अनुभव नहीं था। परंतु लोगों से पूछकर सारा प्रबंध किया और पूरी विधि-व्यवस्था के साथ दाह संस्कार कार्य को संपन्न कराया। रमजान की परवाह किए बिना उक्त सभी युवक ग्यारह बजे रात्रि तक इस नेक कार्य को संपन्न कराया। इन युवकों का कहना है कि मानवता से बढ़कर कोई जाति- धर्म नहीं होता। ऐसे विपत्ति में अगर कोई अपने मित्र, सगे-संबंधी की मदद नहीं करे, तो अपने आप में यह एक विस्मयकारी घटना है। ऐसे में हम एक बेहतर जाति-धर्म विहीन समाज की कल्पना कैसे कर सकते हैं। इनलोगों का कहना कि इस नेक कार्य से उनलोगों को काफी संतुष्टि मिली है। जरूरत पड़ने पर आगे भी इस तरह का फर्ज निभाते रहेंगे। वास्तव में ऐसे युवक नमन के पात्र है, समाज को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार/अजय

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